पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/४१२

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१९४११ ] प्रतिसारणीय दंड [ ३५३ उपसम्पदा नहीं देता; 119 प्रव्राजनीय कर्ममें अट्ठारह प्रतिप्रश्रब्ध करने लायक समाप्त (९) दंड माफ़ करनेकी विधि "और भिक्षुओ! इस प्रकार माफ़ी देनी चाहिये-जिस भिक्षुका प्रव्राजनीय कर्म किया गया है वह संघके पास जाकर • उकळं बैट हाथ जोड़ ऐसा बोले- ।" 'भन्ते ! हम संघ द्वारा प्रव्राजनीय कर्मसे दंडित हो ठीकसे वर्तते हैं ० प्रव्राजनीय कर्मकी माफ़ी चाहते हैं। दूसरी वार भी ०। तीसरी वार भी । "(तव) चतुर समर्थ भिक्षु संघको सूचित करे-~०२।" प्रदाजनीय कर्म समाप्त ॥३॥ 1 I 20 ६४-प्रतिसारणीय कर्म (१) प्रव्राजनीय दंडके आरम्भकी कथा उस समय आयुष्मान् सु धर्म मच्छि का संड में चित्र गृहपतिके आवासिक (आश्रम बनानेवाले) हो न व क मि क (=नई इमारतकेतत्वावधान करनेवाले) ध्रुव भक्तक (= (=सदा वहीं भोजन करनेवाले) थे। जब चित्र गृहपति संघ, या गण या व्यक्तिका निमंत्रण करना चाहता था तो आयुष्मान् सु धर्म को बिना पूछे. . .नहीं करता था। उस समय, आयुष्मान् सा रि पुत्र आ यु ष्मा न् म हा मौद्गल्या य न आयुष्मान् म हा का त्या य न, आयुष्मान् म हा को द्वि त (=कोष्टिल), आयुष्मान् म हा क प्पि न्, आयुष्मान् म हा चुन्द, आयुष्मान' अनु रु द्ध, आयुष्मान् रे व त, आयुष्मान् उ पा लि आयुष्मान आनंद, और आयुष्मान राहुल (आदि) बहुतसे स्थविर का शी (देश) में चारिका करते, जहाँ म च्छि का संड था वहाँ पहुँचे। चित्र गृहपतिने सुना कि स्थविर भिक्षु म च्छि का संड में पहुंचे हैं। तब चित्र गृपति जहाँ वे स्थविर भिक्षु थे वहाँ पहुँचा । पहुँच कर स्थविर भिक्षुओंको अभिवादन कर एक ओर बैठ गया। एक ओर वैठे चित्र गृहपतिको आयुष्मान सारिपुत्रने धार्मिक कथा द्वारा समुत्तेजित, सम्प्रहर्षित किया। तब आयुप्मान् सारिपुत्रको धार्मिक कथा द्वारा समुत्तेजित सम्प्रहर्पित हो चित्र गृहपतिने स्थविर भिक्षुओंसे यह कहा- "भन्तै ! कलका नवागन्तुकका भोजन मेरा स्वीकार करें।" थविर भिक्षुओंने मौन रह स्वीकार किया। तव चित्र गृहपति स्थविर भिक्षुओंकी स्वीकृति जान, आसनसे उठ, स्थविर भिक्षुओंको अभिवादन कर प्रदक्षिणा कर जहाँ आयुष्मान् सु धर्म थे वहाँ गया। जाकर आयुष्मान् सुधर्मको अभिवादन कर एक ओर खड़ा हो गया। एक ओर खळे चित्र गृहपतिने आयुष्मान् मुधर्मसे यह कहा- "भन्ते ! आर्य सुधर्म (भी) स्थविरोंके साथ कलका मेरा भोजन स्वीकार करें।" पृष्ठ ३४६ । ५ देखो २ देखो पृष्ठ ३४६, 'तर्जनीय कम'के स्थानपर 'प्रदाजनीय कर्म' और 'पण्डुक' तथा 'लोहितक' के स्थानपर 'वह भिक्षु' करके पढ़ना चाहिये। ३ संभवतः जौनपुर जिलेका 'मछली शहर' कस्वा । ४५