पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/४१४

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१९४१५ ] प्रतिसारणीय दंड [ ३५५ वुद्ध भगवान्ने फटकारा कैसे तू मोघपुरुप चित्र-गृहपति (जैसे) श्रद्धालु प्रसन्न, दायक, कारक, संघ-सेवकको छोटी (वात) से खुनसायेगा! छोटी (वात) से नाराज़ करेगा । मोघ पुरुप ! न यह अप्रसन्नोंको प्रसन्न करनेके लिये है ।" फटकार कर धार्मिक कथा कह भगवान्ने भिक्षुओंको संबोधित किया-- (२) दण्ड देनेकी विधि "तो भिक्षुओ! 'चित्र गृहपतिसे जा क्षमा माँगो' (कह) संघ सु धर्म भिक्षुका प्रतिसारणीय कर्म करे । 121 "और भिक्षुओ ! इस प्रकार (प्रतिसारणीय कर्म) करना चाहिये ; पहले सुधर्म भिक्षुको प्रेरित करना चाहिये, प्रेरित करके स्मरण दिलाना चाहिये, स्मरण दिला कर आपत्तिका आरोप करना चाहिये, आपत्तिका आरोप करके चतुर समर्थ भिक्षु संघको सूचित करे- "क. ज्ञप्ति-'भन्ते ! संघ मेरी सुने -इस सुधर्म भिक्षुने चित्र गृहपति जैसे श्रद्धालु ० को छोटी (वात) से खुनसाया ०; यदि संघ उचित समझे तो संघ–'चित्र गृहपतिसे जा क्षमा माँगो' (कह) सुधर्म भिक्षुका प्रतिसारणीय कर्म करे—यह सूचना है। "ख. अनुश्रा व ण -(१) 'भन्ते ! संघ मेरी सुने--इस सुधर्म भिक्षुने चित्र गृहपति जैसे श्रद्धालु० को छोटी (वात) से खुनसाया ०, संघ 'चित्र गृहपतिसे जा क्षमा माँगो'--(कह) सु धर्म भिक्षुका प्रतिसारणीय कर्म करता है। जिस आयुष्मान्को सुधर्म भिक्षुका प्रति सा र णी य कर्म पसंद है वह चुप रहे; जिसको नहीं पसंद है वह वोले। "(२) 'दूसरी वार भी ०१ " (३) 'तीसरी बार भी ० । "ग. धा र णा—'संघने सुधर्म भिक्षुका प्रतिसारणीय कर्म कर दिया । संघको पसंद है, इसलिये चुप है-ऐसा मैं इसे समझता हूँ' ।" 122 (३) नियम विरुद्ध प्रतिसारणीय दंड १-"भिक्षुओ! तीन वातोंसे युक्त प्रतिसारणीय कर्म, अधर्म कर्म ० (कहा जाता) है- (१) सामने नहीं किया गया होता; (२) बिना पूछे किया गया होता है; (३) विना प्रतिज्ञा (=स्वी- कृति) कराये किया गया होता है ।....' ।" 134 वारह अधर्म कर्म समाप्त (४) नियमानुसार प्रतिसारणीय दंड १--"भिक्षुओ ! तीन बातोंसे युक्त प्रतिसारणीय कर्म, धर्मकर्म ० (कहा जाता) है- (१) सामने किया गया होता है; (२) पूछ कर किया गया होता है; (३) प्रतिज्ञा (=स्वीकृति) फराके किया गया होता है। ०२।" 146 वारह धर्म कर्म समाप्त (५) प्रतिसारणीय दंड देने योग्य व्यक्ति १-"भिक्षुओ ! पांच बातोंसे युक्त भिक्षुको चाहनेपर (आकंखमान) प्रतिसारणीय कर्म १ देखो पृष्ठ ३४२। २ देखो पृष्ठ ३४३ ॥