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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/४१५

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२-- ३५६ ] ४-चुल्लवग्ग [ १९४७ करे--(१) गृहस्थोंके अलाभ (=हानि) का प्रयत्न करता है; (२) गृहस्योंके अनर्थके लिये प्रयत्न करता है; (३) गृहस्थोंके अवास (=निर्वासन) के लिये प्रयत्न करता है; (४) गृहस्थोंकी निन्दा करता है, परिहास करता है; (५) गृहस्थ गृहस्थमें फूट डालता है । भिक्षुओ! इन पाँच बातोंसे युक्त भिक्षुको इच्छा होनेपर संघ प्रतिसारणीय कर्म करे । 147 -"भिक्षुओ ! और भी पाँच बातोंसे युक्त भिक्षुका इच्छा होनेपर संघ प्रतिसारणीय कर्म करे-(१) गृहस्थोंसे बुद्धकी निन्दा करता है; (२) गृहस्थोंसे धर्मकी निन्दा करता है; (३) गृहस्थोंगे संघकी निन्दा करता है; (४) गृहस्थोंको नीच (वात) से खुनसाता है, और नीच (बात) से नाराज करता है; (५) गृहस्थोंसे धार्मिक प्रतिश्रव (=आज्ञा पालन) को नहीं सच कराता। भिक्षुओ! इन पाँच ० । 148 ३--"भिक्षुओ! पाँच भिक्षुओंका इच्छा होनेपर संघ प्रतिसारणीय कर्म करे- (१) अकेला गृहस्थोंके अलाभ (=हानि) का प्रयत्न करता है; ० (५) अकेला गृहस्थ गृहस्थमें फूट डालता है । भिक्षुओ ! इन पाँच ० । 149 ४-"भिक्षुओ ! और भी पाँच बातोंसे युक्त भिक्षुका इच्छा होनेपर संघ प्रतिसारणीय कर्म करे--(१) अकेला गृहस्थोंसे बुद्धकी निन्दा करता है; ० (५) अकेला गृहस्थोंसे धार्मिक प्रतिथव (=शिक्षा ?) को नहीं सच कराता। भिक्षुओ! इन पाँच०।" I50 आकंखमान चार पंचक समाप्त १ (६) दंडित व्यक्तिके कर्तव्य भिक्षुओ! जिस भिक्षुका प्रतिसारणीय कर्म किया गया है उसे ठीकसे बर्ताव करना नाहिये और वह ठीकसे बर्ताव यह है-(१) उपसम्पदा न देनी चाहिये; o' IISI अट्ठारह प्रतिसारणीय कर्मके व्रत समाप्त (७) अनुदूत देनेकी विधि तो मंघने--तुम चि व गृहपतिसे जा क्षमा माँगो'--- (कह) मुधर्म भिक्षुका प्रतिमारणीय काम किया। संघ द्वारा प्रतिसारणीय कर्मसे दंडित हो म च्छि का मं ड में जा मूक हो चित्र गृहपतिमे क्षमा न माँग सके। वे फिर श्रा व स्ती लौट गये । भिक्षुओंने पूछा- "आवुस सुधर्म ! चित्र गृहपतिमे तुमने क्षमा माँग ली ?" "आवुसो! म मच्छिकामंड जा, मूक हो चि व गृहपतिमे क्षमा न माँग सका ।" भगवान्ने यह बात कही ।- "तो भिक्षुओ! संघ चित्र गुहपनिने क्षमा मांगनेके लिये मुध म भिक्षको (एक) अन्न (-माथी) दे। 152 "और इस प्रकार देना चाहिये-पहिले (जानेवाले) भिक्षन पूछना चाहिये। पूछकर चतुर ममर्थ भिक्षु मंघको मूचित करे- "क. ज्ञप्ति-'भन्ने ! संघ मेरी मुने । यदि मंघ उचित मम तो मंच अमुक नामवाले भिक्षको चित्र गृहपतिने क्षमा मांगने के लिये मुधर्म भिक्षुको अनुन दे-यह म च ना है। "ख. अनु श्रावण-(१) 'भन्ने ! मंघ मंग मुने । गंघ दम नामबाले भिक्षको अनुदन द ५ देखो पृष्ट ३४४ ।