पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/४१६

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17 ! १९४११० ] प्रतिसारणीय दंड [ ३५७ रहा है । जिस आयुष्मान्को इस नामवाले भिक्षुका अनुदूत किया जाना पसन्द हो वह चुप रहे; जिसको पसन्द न हो वह बोले 'दूसरी बार भी। 'तीसरी बार भी० । "-'संघने इस नामवाले भिक्षुको० अनुदूत दिया; संघको पसन्द है, इसलिये चुप है--ऐसा मैं इसे समझता हूँ।' "भिक्षुओ! सु धर्म भिक्षुको उस अनुदूतके साथ मच्छि का सं ड जा चित्र गृहपतिसे- 'गृहपति ! क्षमा करो, विनती करता हूँ' (कह) क्षमा माँगनी चाहिये । ऐसा कहनेपर यदि क्षमा करे तो ठीक यदि न क्षमा करे तो अनुदूत भिक्षुको कहना चाहिये--'गृहपति ! इस भिक्षुको क्षमा करो। तुमसे विनती करता है।' ऐसे कहनेपर यदि क्षमा करे तो ठीक, यदि न क्षमा करे तो अनुदूत भिक्षुको कहना चाहिये-'गृहपति ! इस भिक्षुको क्षमा करो, मैं तुमसे विनती करता हूँ।'--ऐसा कहनेपर यदि क्षमा करे तो ठीक, न क्षमा करे तो अनुदूत भिक्षुको कहना चाहिये-'गृहपति ! संघके वचनसे इस भिक्षुको क्षमा करो।' ऐसा कहनेपर यदि क्षमा करे तो ठीक; यदि न क्षमा करे तो अनुदूत भिक्षु सुधर्म भिक्षुको चित्र गृहपतिके देखने सुनने भरके स्थानमें एक कंधेपर उत्तरासंघ करा, उकळं बैठा, हाथ जोळवा उस आपत्ति (अपराध)की देशना ( Confession ) कराये ।" तव आयुष्मान् सु ध म ने अनुदूत भिक्षुके साथ मच्छि का सं ड जा चि त्र गृहपतिसे (अपनेको) क्षमा करवाया। (तव) वह ठीक तरहसे वरताव करते थे० भिक्षुओंके पास जा ऐसा कहते थे-- 'आवुसो ! संघ द्वारा दंडित हो मै अव ठीकसे वर्तता हूँ, रोवाँ गिराता हूँ, निस्तारके लायक (काम) करता हूँ। मुझे कैसे करना चाहिये ?' भगवान्से यह बात कही।- "तो भिक्षुओ ! संघ सु धर्म भिक्षुके प्रतिसारणीय कर्मको माफ़ करे ।" 153 (८) दंड न माफ करने लायक व्यक्ति (१-५) “भिक्षुओ ! पाँच वातोंसे युक्त भिक्षुके प्रतिसारणीय कर्मको नहीं माफ़ करना चाहिये--(१) उपसम्पदा देता है; ०'।" 158 प्रतिसारणीय कर्म में अट्ठारह न प्रतिप्रश्रब्ध करने लायक समाप्त (९) दंड माफ करने लायक व्यक्ति (१-५ "भिक्षुओ ! पाँच वातोंसे युक्त भिक्षुके प्रतिसारणीय कर्मको माफ़ करना चाहिये-- (१) उपसम्पदा नहीं देता; 10° ।” 173 प्रतिसारणीय कर्ममें अट्ठारह प्रतिप्रश्रब्ध करने लायक समाप्त (१०) दंड माफ करनेको विधि "और भिक्षुओ! इस प्रकार माफ़ी देनी चाहिये-वह सुधर्म भिक्षु, भिक्षु-संघके पास जा० उकळू वैठ, हाथ जोळ ऐसा बोले " २ 'देखो पृष्ट ३४५। देखो पृष्ठ ३४६ तर्जनीय कर्मके स्थानमें, प्रतिसारणीय कर्म, तथा 'पंडुक' और 'लोहितक' भिक्षुवे स्थानमें 'सुधर्म' भिक्षुकरके पढ़ना चाहिये ।