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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/४१७

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३५८ ] ४-चुल्लवग्ग [ ११५।३ "--संघने सुधर्म भिक्षुके प्रतिसारणीय कर्मको मात्र; कर दिया । संघको पसन्द है, इसलिये चुप है--ऐसा मैं इसे समझता हूँ।" 174 प्रतिसारणीय कर्म समाप्त ॥४॥ ६५-आपत्तिके न देखनेसे उत्क्षेपणीयकर्म २-कौशाम्बी (१) आपत्तिके न देखनेसे उत्क्षेपणीय दंडके आरम्भको कथा उस समय बुद्ध भगवान् कौशाम्बीके घोषि ता रा म में विहार करते थे। उस समय आयुष्मान् छन्न आपत्ति (अपराध) करके उस आ पत्ति को दे ख ना (Realisation) नहीं चाहते थे । जो वह अल्पेच्छ भिक्षु० थे वे हैरान.. होते थे--'कैसे आयुष्मान् छंद आपत्ति करके उसको देखना नहीं चाहते !' तव उन भिक्षुओंने भगवान्से यह बात कही । फटकार कर धार्मिक कथा कह भगवान्ने भिक्षुओंको संबोधित किया-- "तो भिक्षुओ ! संघ छन्न भिक्षुका आपत्तिके न देखनेसे संघके साथ सहयोग न करने लायक उत्क्षेपणीय कर्म करे ।" 175 (२) दंडके देनेकी विधि "और भिक्षुओ! इस प्रकार (उत्क्षेपणीय कर्म) करना चाहिये । पहले छन्न भिक्षुको प्रेरित करना चाहिये०, आपत्तिका आरोप करके चतुर समर्थ भिक्षु-संघको सूचित करे- "क. ज्ञ प्ति-'भन्ते ! संघ मेरी सुने । यह छन्न भिक्षु आपत्तिको करके उस आपत्तिको देखना नहीं चाहता। यदि संघ उचित समझे तो आपत्तिके न देखनेके लिये संघ छ न्न भिक्षुका संघके साथ सहयोग न करने लायक उत्क्षेपणीय कर्मको करे—यह सूचना है "ख. अनु श्रा व ण-(१) 'भन्ते ! संघ मेरी सुने । संघ आपत्तिके न देखने के लिये छ न भिक्षुका० उत्क्षेपणीय कर्म करता है । जिस आयुष्मान्को० पसन्द है वह चुप रहे ; जिसको नहीं पसन्द है वह वोले।' “(२) 'दूसरी वार भी०५ । “(३) 'तीसरी वार भी०१ । "ग. धा र णा-'संघने० छ न भिक्षुका० उत्क्षेपणीय कर्म किया। संघको पसन्द है, इसलिये चुप है-ऐसा मैं इसे समझता हूँ।' "भिक्षुओ ! सारे आवामोंमें कह दो कि आपत्तिके न देखने के लिये छन्न भिक्षुका मंधके साथ मयोग न होने लायक उन्क्षेपणीय कर्म हुआ है।" (३) नियम विरुद्ध उत्क्षेपणीय कर्म १-“भिक्षुओ ! तीन बातोंमे युक्त० उन्क्षेपणीय कर्म,अधर्म कर्म० (कहा जाता) है--( ? ) मामने नहीं किया गया होता; (२) बिना पूछे किये गया होता है; (३) बिना प्रतिज्ञा (=ग्वीकृति) कराये किया गया होता है ।...०५।" 187 बारह अधर्म कर्म समाप्त 'देखो पृष्ठ ३४२ ।