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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/४१९

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४-चुल्लवग्ग [ १९५७ किया, न पूजन किया। भिक्षुओंके सत्कार, गुरुकार, सम्मान, पूजा न करनेसे...उस आवासने भी दूसरे आवासमें चला गया। वहाँ भी भिक्षुओंने न उसका अभिवादन किया० उस आवाससे भी दूसरे आवासमें चला गया। वहाँ भी भिक्षुओंने न उसका अभिवादन किया० । भिक्षुओंके सत्कार० न करने से.. ...वह फिर कौशाम्बी लौट आया। (तब) वह ठीकसे वर्तता था, रोवाँ गिराता था, निस्तारके लायक (काम) करता था, भिक्षुओंके पास जाकर ऐसा बोलता था-आबुसो ! संघ द्वारा आपत्ति न देखनेके लिये उत्क्षेपणीय कर्मसे दंडित हो अब मैं ठीकसे वर्तता हूँ, रोवाँ गिराता हूँ, निस्तारके लायक काम करता हूँ, मुझे कैसे करना चाहिये।' भगवान्से यह बात कही- "तो भिक्षुओ ! संघ छन्न भिक्षुके आपत्ति न देखनेके लिए किये गये ० उत्क्षेपणीय कर्मको माफ़ करे ।" 207 (७) दण्ड न माफ करने लायक व्यक्ति १-५-"भिक्षुओ ! पाँच वातोंसे युक्त भिक्षुके० उत्क्षेपणीय कर्मको नहीं माफ़ करना चाहिये-(१) उपसम्पदा देता है; (२) निश्रय देता है; (३) श्रामणेरसे उपस्थान (=मेवा) कराता है; (४) भिक्षुणियोंको उपदेश देनेकी सम्मति पाना चाहता है; (५) सम्मति मिल जानेपर भी भिक्षुणियोंको उपदेश देता है ।. . .208 ६-१०--"और भी भिक्षुओ! पाँच बातोंसे युक्त भिक्षुके० उत्क्षेपणीय कर्मको नहीं माफ़ करना चाहिये-(६) जिस आपत्तिके लिये संघने उत्क्षेपणीय कर्म किया है उस आपत्तिको करता है; (७) या उस जैसी दूसरी आपत्तिको करता है; (८) या उससे अधिक बुरी आ पक्ति करता है; (९) कर्म (=फ़ैसला) की निन्दा करता है; (१०) कर्मिक (=फैसला करनेवालों) की निन्दा करता है। 209 ११-१५-"और भी भिक्षुओ ! पाँच०--(११)प्र कृ ता त्म (=दंडरहित ) भिक्षुओंमे अभिवा- दन ; (१२) प्रत्यु त्था न; (१३) हाथ जोळना; (१४) सामीचि-कर्म (गुगल-प्रश्न पूछना); (१५) आसन ले आना (इन कामोंके लेने) की इच्छा रखता है ।. . . (१६-२०) "और भी भिक्षुओ ! पाँच०--प्रकृतात्म भिक्षुमे,-(१६) गव्या ले आना: (१७) पादोदक; (१८) पादपीठ; (१९) पा द-क ठ लि क; (२०) पात्र-चीवर लाना, (इन कामोंके लेने) की इच्छा रखता है। . . .21 I २१-२५-"और भी भिक्षुओ ! पाँच-(२१) प्रकृतात्म भिक्षुमे स्नान करते वक्त पीट मलने (का काम लेने) की इच्छा रखता है; (२२) प्रकृतान्म भिक्षुको गील-भ्रष्ट होनेका दोष लगाता है; (२३) आचार-भ्रष्ट होनेका दोप लगाता है; (२८) बुरी-जीविका रखनेका दोष लगाता है; (२५) भिक्षु-भिक्षुओंमें फट डालता है ।. . .212 २६-३०-"और भी भिक्षुओ ! पाँच--(२६) गृहस्थोंकी ध्वजा (वेष) धारण करता है; (२) नी थि कों की ध्वजा धारण करता है; (२८) तीथिकोंका सेवन करना है; (२९) भिक्षुओंका मेवन नहीं करता; (३०) भिक्षुओंकी गिक्षा (=नियम) नहीं मीलना ।... (३१-:.) "और भी भिक्षुओ ! 'पांत्र--(३१) प्रकृतान्म भिक्षुके माथ एल बनवाट आवाममें रहता है; (३२) एक छतवाले अनावानमं रहता है; (३३) एक छतवाने आवाग या अना- वाममें रहता है; (३४) प्रवृतात्म भिक्षको देवकर आमनमे नहीं उटना; (३.५) प्रानाम भिक्षण भीतर या बाहरने नागन करता है ।. . .2113 ३६-४-"भिक्षो ! आट:-(३६) प्रताम भिक्षुकै उदोमय को गिर कर 210