पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/४२०

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१९६।३ ] नियम विरुद्ध ० उत्क्षेपणीय दंड है; (३७) प्र वा र णा को स्थगित करता है; (३८) वात बोलने लायक (काम) करता है; (३९) अनुवाद (=शिकायत) को प्रस्थापित करता है; (४०) अवकाश कराता है; (४१) प्रेरणा करता है; (४२) स्मरण कराता है; (४३) भिक्षुओंके साथ संप्रयोग करता है । 214 तैतालिस न प्रतिप्रश्रब्ध करने लायक समाप्त ." 222 (८) दंड माफ करने लायक व्यक्ति १-५-"भिक्षुओ! पाँच वातोंसे युक्त भिक्षुके उत्क्षेपणीय कर्मको माफ़ करना चाहिये- (१) उपसम्पदा नहीं देता; ०१ (४३) भिक्षुओंके साथ सम्प्रयोग नहीं करता। .. तैतालिस जिसका प्रतिप्रश्रब्ध करने लायक समाप्त (९) दंड माफ़ करनेकी विधि "और भिक्षुओ! इस प्रकार माफ़ी देनी चाहिये-वह छन्न भिक्षु-संघके पास जा० उकळू वैठ, हाथ जोळ ऐसा बोले-०२।" 223 आपत्ति न देखनेसे उत्क्षेपणीय कर्म समाप्त ॥५॥ ६६-आपत्ति के प्रतिकार न करनेसे उत्क्षेपणीय कर्म (१) आपत्तिके प्रतिकार न करनेसे उत्क्षेपणीय दंडके आरम्भको कथा उस समय बुद्ध भगवान को शा म्वी के घो षि ता रा म में विहार करते थे। उस समय आयुष्मान् छ न्न आपत्ति करके उस आपत्तिका प्रतिकार करना नहीं चाहते थे। ०३ । फटकारकर धार्मिक कथा कहकर भगवान्ने भिक्षुओंको संबोधित किया- (२) दंड देनेको विधि "तो भिक्षुओ! संघ छन्न भिक्षुका आपत्तिके प्रतिकार न करनेसे संघके साथ सहयोग न करने लायक उत्क्षेपणीय कर्म करे; और भिक्षुओ! इस प्रकार उत्क्षेपणीय कर्म करना चाहिये०५ । 224 "भिक्षुओ ! सारे आवासोंमें कह दो कि आपत्तिका प्रतिकार न करनेसे छन्न भिक्षुका संघके साथ सहयोग न होने लायक उत्क्षेपणीय कर्म हुआ है।" (३) नियम-विरुद्ध उत्क्षेपणीय दंड १-"भिक्षुओ! तीन बातोंसे युक्त आपत्तिके प्रतिकार न करनेसे किया गया संघमें सहयोग न होने लायक उत्क्षेपणीय कर्म, अधर्म कर्म० (कहा जाता) है-(१) सामने नहीं किया गया होता; (२) विना पूछे किया गया होता है; (३) विना प्रतिज्ञा (=स्वीकृति) कराये किया गया होता है। 1" 236 बारह अधर्म कर्म समाप्त 4 २ देखो चुल्ल ११११८ पृष्ठ ३४५ । देखो चुल्ल १९१९ पृष्ठ ३४६; 'तर्जनीय कर्म के स्थानमें 'आपत्ति न देखनेसे उत्क्षेपणीय कर्म' तथा 'पंडुक' और 'लो हि त क' भिक्षुओंके स्थानमें 'छन्न' भिक्षु करके पढ़ना चाहिये। देखो चुल्ल १७५।१ पृष्ठ३५८ । "देखो चुल्ल १९५।२ पृष्ठ ३५८ । "देखो चुल्ल १७५३ पृष्ठ ३५८ ।