पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/४२१

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३६२ ] ४-चुल्लवग्ग [ १९६८ (४) नियमानुसार उत्तेपणीय दंड १- - "भिक्षुओ! तीन वातोंसे युक्त आपत्तिके प्रतिकार न करनेसे किया गया संघमें सहयोग न करने लायक उत्क्षेपणीय कर्म , धर्म कर्म० (कहा जाता) है--(१) सामने किया गया होता है; (२) पूछकर किया गया होता है; (३) प्रतिज्ञा (=स्वीकृति) कराके किया गया होता है । ०१।" 248 बारह धर्म कर्म समाप्त (५) उत्क्षेपणीय दंड देने योग्य व्यक्ति --"भिक्षुओ ! तीन वातोंसे युक्त भिक्षुको चाहनेपर (=आकंखमान) संघ आपत्तिका प्रतिकार न करनेके लिये उत्क्षेपणीय कर्म करे--०२।" 254 छ आकंखमान समाप्त (६) दंडित व्यक्तिके कर्त्तव्य "भिक्षुओ! जिस भिक्षुका आपत्तिका प्रतिकार न करनेसे संघमें सहयोग न करने लायक उत्क्षे- पणीय कर्म किया गया है, उसे ठीकसे बर्ताव करना चाहिये; और वह ठीकसे बर्ताव यह है- उपसम्पदा न देनी चाहिये०३ (४३) भिक्षुओंके साथ सम्प्रयोग नहीं करना चाहिये ।" 297 तैतालिस ०उत्क्षेपणीय कर्म के व्रत समाप्त तव संघने आपत्तिका प्रतिकार न करनेसे छन्न भिक्षुका संघके साथ सहयोग न करने लायक उत्क्षेपणीय कर्म किया। वह संघ द्वारा आपत्तिका प्रतिकार न करनेसे० उत्क्षेपणीय कर्म किये जानेपर उस आवासको छोड़ दूसरे आवासमें चला गया। ०६ मुझे कैसे करना चाहिये ? भगवान्से यह बात कही।- "तो भिक्षुओ! संघ छन्न भिक्षुके आपत्तिका प्रतिकार न करनेके लिये संघके साथ सहयोग न करने लायक उत्क्षेपणीय कर्मको माफ़ करे ।" (७) दंड न माफ करने लायक व्यक्ति १-५---"भिक्षुओ! पाँच बातोंसे युक्त भिक्षुके ० उत्क्षेपणीय कर्मको नहीं माफ़ करना चाहिये--०५।" 302 तैतालिस प्रतिप्रश्रब्ध करने लायक समाप्त (८) दंड माफ करने लायक व्यक्ति (१-५) “भिक्षुओ! पाँच बातोंसे युक्त भिक्षुके ० उत्क्षेपणीय कर्मको माफ़ करना चाहिये- (१) स्पसम्पदा नहीं देता; ०६; (४३) भिक्षुओंके साथ सम्प्रयोग नहीं करता। 307 तैतालिस प्रतिप्रथब्ध करने लायक समाप्त 11 १ देखो चुल्ल १३ पृष्ट ३४२ । २ देखो चुल्ल १९११४ पृष्ट ३४३-४६ । देयो चुल्ल ११।५ पृष्ट ३८८ । ४ बाकी २मे ४२के लिये देखो चुल्ल १५६ पृष्ट ३५९ । "देखो चुल्ल १९५७ पृष्ठ ३६० । 'देखो चुाल ?:५८ पृष्ट ३६? ।