पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/४२२

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१९७१ ] उत्क्षेपणीय कर्म [ ३६३ (९) दंड माफ करनेकी विधि "और भिक्षुओ! इस प्रकार माफ़ी देनी चाहिये-वह छन्न भिक्षु संघके पास जा० उकळू बैठ, हाथ जोळ ऐसा वोले-०।" 308 आपत्तिका प्रतिकार न करनेसे० उत्क्षेपणीय कर्म समाप्त ॥ ६ ॥ ng- ७७-बुरी धारणा न छोळनेसे उत्क्षेपणीय कर्म -श्रावस्ती (१) पूर्व-कथा उस समय बुद्ध भगवान् श्रा व स्ती में अनाथपिंडिकके आराम जेतवनमें विहार करते थे। उस समय गन्धवाधि-पुब्ब (=भूतपूर्व गन्धवाधि गिद्ध मारनेवाले) अ रि ष्ट भिक्षुको ऐसी बुरी दृष्टि (=धारणा, मत) उत्पन्न हुई थी-'मैं भगवान्के उद्देश किये धर्मको ऐसे जानता हूँ जैसे कि जो (निर्वाण आदिके) अन्तरायिक (=विघ्नकारक) धर्म (कार्य) भगवान्ने कहे हैं, सेवन करनेपर भी वह अन्तराय (=विघ्न) नहीं कर सकते।' तब वे भिक्षु जहाँ० अ रिष्ट भिक्षु था वहाँ गये। जाकर अरिष्ट भिक्षुसे यह बोले- "आवुस अरिष्ट! सचमुच ही तुम्हें इस प्रकारकी बुरी दृष्टि उत्पन्न हुई है-० अन्तराय नहीं कर सकते'?" "आवुसो ! मैं भगवानके उपदेश किये धर्मको ऐसे जानता हूँ० अन्तराय नहीं कर सकते ।" तब वह भिक्षु ० अरिष्ट भिक्षुको उस बुरी दृष्टिसे हटानेके लिये कहते, समझाते-बुझाते थे- "आवुस अरिष्ट ! मत ऐसा कहो! मत आवुस अरिष्ट ! ऐसा कहो ! मत भगवान्पर झूठ लगाओ। भगवान्पर झूठ लगाना अच्छा नहीं है । भगवान् ऐसा नहीं कह सकते। अनेक प्रकारसे भग- वान्ने आवुस अ रिप्ट ! अन्तरायिक धर्मोको अन्तरायिक कहा है । 'सेवन करनेपर वे अन्तराय करते हैं'–कहा है। भगवान्ने कामों (=भोगों) को बहुत दुःखदायक, बहुत परेशान करनेवाले कहा है। उनमें बहुत दुप्परिणाम बतलाये हैं। भगवान्ने कामोंको अस्थि कं का ल समान कहा है, मां स-पे शी समान०, त ण-उ ल्का समान०, अंगा र क (भौर) समान०, स्वप्न-स मा न०, या चि त को प म (=मँगनीके आभूपण) के समान०, वृक्ष-फ ल ४ समान०, असि सू ना समान०, श क्ति-शू ल समान०, सर्प-शि र समान कहा है। भगवान्ने कामोंको बहुत दुख-दायक, बहुत परेशान करनेवाले, बहुत दुष्परि- णामवाले कहा है।" उन भिक्षुओं द्वारा ऐसा कहे जाने, समझाये वुझाये जानेपर भी० अरिष्ट भिक्षु उसी बुरी दृष्टिको दृढ़तासे पकळ, ज़िद करके (उसका) व्यवहार करता था-"मैं भगवान्के उपदेश किये धर्मको ऐसे जानता हूँ० अन्तराय नहीं कर सकते।" जब वह भिक्षु० अरिष्ट भिक्षुको उस दुरी दृष्टिसे नहीं हटा सके तव उन्होंने भगवान्के पास १ देखो चुल्ल १९५।६ पृष्ठ ३५९ । देखो चुल्ल १९११९ पृष्ठ ३४६; 'तर्जनीय कर्मके स्थानमें' आपत्तिका प्रतिकार न पारनेसे उत्क्षेपणीय पर्म' तथा 'पंडक' और 'लोहितक' भिक्षुओंके स्थानमें अमुक नाम । मिलाओ अलगद्पम-सुत्तन्त (मज्झिम-निकाय २२, पृष्ठ ८४) । "इन उपमाओंके लिये देखो 'पोतलिय-सुत्तन्त' (मज्झिम-निकाय ५४, पृष्ठ २१६-२१८) ।