पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/४२३

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-चुल्लवग्ग [ १९७५ ...जाकर अभिवादनकर एक ओर... बैठ...भगवान्से यह बात कही। तब भगवान्ने इसी संबंधमें इसी प्रकरणमें भिक्षुओंको एकत्रितकर० अरिष्ट भिक्षुसे पूछा- "सचमुच अरिष्ट ! तुझे इस प्रकारकी बुरी दृष्टि उत्पन्न हुई है-'मैं भगवान्के० अन्तराय नहीं कर सकते' ?" "हाँ भन्ते ! मैं भगवान् के उपदेश किये धर्मको ऐसे जानता हूँ, जैसे कि जो अन्तरायिक धर्म भगवान्ने कहे हैं, सेवन करनेपर भी वह अन्तराय नहीं कर सकते।" "मोधपुरुष (=निकम्मा आदमी) ! किसको मैंने ऐसा धर्म उपदेश किया जिसे तू ऐसा जानता भगवान् ०' । क्यों मोघपुरुष ! मैंने तो अनेक प्रकारसे अन्त रा यि क धर्मों को अन्तरायिक कहा है० १ बहुत दुष्परिणाम बतलाये हैं ! और तू मोघपुरुष ! अपनी उल्टी धारणाले हमें झूठ लगा रहा है, अपनी भी हानि कर रहा है, बहुत अपुण्य (= पाप) कमा रहा है। मोषपुरुष ! यह चिरकाल तक तेरे लिये अहित और दुःखके लिये होगा। मोघपुरुष ! न यह अप्रसन्नोंको प्रसन्न करनेके लिये है।" फटकारकर भगवान्ने भिक्षुओंको सम्बोधित किया- "तो भिक्षुओ! संघ अ रि प्ट भिक्षुका बुरी धारणा न छोळनेसे संघमें सहयोग न करने लायक उत्क्षेपणीय कर्म करे।" (२) दंड देनेकी विधि "और भिक्षुओ! इस प्रकार उत्क्षेपणीय कर्म करना चाहिये । २ 309-389 "भिक्षुओ! सारे आवासोंमें कह दो कि बुरी दृष्टि न छोळनेके लिये अरिष्ट भिक्षुका० उत्क्षेप- णीय कर्म हुआ है।" (३) नियम-विरुद्ध उत्तेपणीय दंड १-“भिक्षुओ ! तीन बातोंसे युक्त बुरी धारणाके लिये किया गया० उत्क्षेपणीय कर्म, अधर्म कर्म० (कहा जाता) है-(१) सामने नहीं किया गया होता; (२) बिना पूछे किया गया होता है; (३) विना प्रतिज्ञा ( स्वीकृति) कराये किया गया होता है ।...० ३।" 400 बारह अधर्म कर्म समाप्त (४) नियमानुसार उत्क्षेपणीय दंड १-"भिक्षुओ! तीन वातोंसे युक्त बुरी धारणा न छोळनेसे किया गया संघमें सहयोग न करने लायक उत्क्षेपणीय कर्म , धर्म कर्म (कहा जाता) है-(१) सामने किया गया होता है; (२) पूछकर किया गया होता है; (३) प्रतिज्ञा (=स्वीकृति) कराके किया गया होता है । ०३ ।" 413 वारह धर्म कर्म समाप्त ! (५) उत्क्षेपणोय दंड देने योग्य व्यक्ति १-"भिक्षुओ ! तीन दातोसे युक्त भिक्षुको चाहनपर (=आम्खमान) संघ बुरी धारणा १ २ देखो चुल्ल १९५२ पृष्ठ ३५८; "आपत्तिको न देखने के स्थानमें "वरी दुष्टि न छोटने के लिये" पढ़ना चाहिये। ३ देखो चुल्ल १९१३ एप्ट ३८२.४३ ।