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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/४२४

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१९७९ ] उत्क्षेपणीय कर्म [ ३६५ न छोळनेसे० उत्क्षेपणीय कर्म करे- 419 छः आकंखमान समाप्त २ (६) दंडित व्यक्ति के कर्तव्य "भिक्षुओ! जिस भिक्षुका बुरी धारणा न छोळनेसे ० उत्क्षेपणीय कर्म किया गया है, उसे ठीकसे बर्ताव करना चाहिये; और वह ठीकसे बर्ताव यह हैं-(१) उपसम्पदा न देनी चाहिये ; ० (१८) भिक्षुओंके साथ सम्प्रयोग (=मिश्रण) नहीं करना चाहिये ।" 420 तव संघने० अरिष्ट भिक्षुका बुरी धारणा न छोळनेके लिये, संघके साथ सहयोग न करने लायक उत्क्षेपणीय कर्म किया । संघ द्वारा ० उत्क्षेपणीय कर्म किये जानेपर वह भिक्षु-वेष छोळकर चला गया । तव जो वे अल्पेच्छ० भिक्षु थे—वे हैरान.. होते थे—'कैसे० अरिष्ट भिक्षु संघ द्वारा उत्क्षेप- णीय कर्म किये जानेपर भिक्षु-वेष छोळकर चला जायगा!' तब उन भिक्षुओंने यह बात भगवान्से कही। तव भगवान्ने इसी संबंधमें इसी प्रकरणमें भिक्षु-संघको एकत्रितकर भिक्षुओंसे पूछा- "सचमुच भिक्षुओ ! • अरिष्ट भिक्षु संघ द्वारा० उत्क्षेपणीय कर्म किये जानेपर भिक्षु-वेप छोळ कर चला गया?" “(हाँ) सचमुच भगवान्।" बुद्ध भगवान्ने फटकारा- "कैसे भिक्षुओ! वह मोघपुरुष संघ द्वारा० उत्क्षेपणीय कर्म किये जानेपर भिक्षु-वेष छोळ चला जायगा ! भिक्षुओ! न यह अप्रसन्नोंको प्रसन्न करनेके लिये है।" फटकारकर भगवान्ने धार्मिक कथा कह भिक्षुओंको संबोधित किया- "तो भिक्षुओ ! संघ बुरी धारणाके न छोड़नेके लिये किये गये० उत्क्षेपणीय कर्मको माफ़ करे।" 421 (७) दंड न माफ़ करने लायक व्यक्ति १-५-"भिक्षुओ ! पाँच वातोंसे युक्त भिक्षुके तर्जनीय कर्मको नहीं माफ़ करना चाहिये- (१) उपसम्पदा देता है०६ ।” 426 अट्ठारह न प्रतिप्रश्रब्ध करने लायक समाप्त (८) दंड माफ़ करने लायक व्यक्ति १-५-“भिक्षुओ ! पाँच वातोंसे युक्त भिक्षुके० उत्क्षेपणीय कर्मको माफ़ करना चाहिये- (१) उपसम्पदा नहीं देता० ।" 431 अट्ठारह प्रतिप्रश्रब्ध करने लायक समाप्त (९) दंड माफ करनेकी विधि "और भिक्षुओ! इस प्रकार माफ़ी देनी चाहिये-वह अमुक भिक्षु संघके पास जा एक कंधे पर उत्तरासंघकर (अपनेते) वृद्ध भिक्षुओंके चरणोंमें वन्दनाकर, उकळू वैठ, हाथ जोळ ऐसा कहे- 'देखो चुल्ल १९११४ पृष्ठ ३४३-४४ । देखो चुल्ल १९११५ पृष्ठ ३४४ । देखो चुल्ल ११६ पृष्ठ ३४४ । देखो चुल्ल १९१७ पृष्ठ ३४५ । "देखो चुल्ल १११८ पृष्ठ ३४५-४६ ।