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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/४२६

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२-पारिवासिक-स्कंधक १-परिवास दण्ड पाये भिक्षुके कर्तव्य । २-मूलसे-प्रतिकर्षण दंड पायेके कर्त्तव्य । ३-मानत्त्व दंड पायके कर्तव्य । ४-मानत्त्व चार दंड पायेके कर्तव्य । ५-आह्वान पायेके कर्त्तव्य । " ६१-परिवास दण्ड पाये भिक्षुके कर्त्तव्य १-श्रावस्ती (१) पूर्व-कथा उस समय बुद्ध भगवान् श्रावस्तीमें अनापिंडिकके आराम जेतवनमें विहार करते थे। उस समय पारिवासिक (=जिनको परि वा स का दंड दिया गया है) भिक्षु प्रकृतात्म (=अदंडित) भिक्षुओंके अभिवादन, प्रत्युत्थान, हाथ जोड़ने, सामीचिकर्म (=कुशल-प्रश्न पूछने), आसन ले आना, शय्या ले आना, पादोदक, पाद-पीठ, पाद-कठलिक, पात्र-चीवर ले आना, स्नान करते वक्त पीठ मलना (इन कामों) को लेते थे। जो वह अल्पेच्छ० भिक्षु थे, वे हैरान.. होते थे-कैसे ये पारिवासिक भिक्षु अदंडित भिक्षुओंके अभिवादन० को लेते हैं !' तव भिक्षुओंने भगवान्से यह बात कही। तव भगवान्ने इसी संबंधमें, इसी प्रकरणमें भिक्षु-संघको एकत्रित कर भिक्षुओंसे पूछा ।- "सचमुच भिक्षुओ ! ०?" “(हाँ) सचमुच भगवान् बुद्ध भगवान्ने फटकारा-"कैसे पारिवासिक भिक्षु० !" फटकारकर धार्मिक कथा कह भगवान्ने भिक्षुओंको संवोधित किया- (२) अदंडितके अभिवादन आदिको ग्रहण न करना चाहिये "भिक्षुओ! पारिवासिक भिक्षुको अदंडित भिक्षुओंसे अभिवादन० स्नान करते वक्त पीठ मलना (इन कामों) को नहीं लेना चाहिये । जो ले उसको दुक्कटका दोप हो । भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ पारिवासिक भिक्षुओंको अपने भीतर वृद्धताके अनुसार अभिवादन० स्नान करते वक्त पीठ मलना (इन कामों) को लेनेकी। भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ पारिवासिक भिक्षुओंको पाँच (वातों) की-वृद्धताके अनुसार (१) उपोसथ, (२) प्रवारणा, (३) वार्षिक साटिका, (४) विसर्जन (=ओणोजना) और (५) (=भोजन भात) ।' "तो भिक्षुओ! पारिवासिक भिक्षुओंके, जैसे उन्हें वर्तना चाहिये (वह) व्रत विधा न करता हूँ- (३) पारिवासिकके व्रत "भिक्षुओ ! पारिवासिक भिक्षुको ठीकसे वर्तना चाहिये । और वे ठीकसे वर्ताव यह हैं- (१) उपसम्पदा न देनी चाहिये; (२) नि ध य नहीं देना चाहिये; (३) श्रामणेरसे उपस्थान २९ ] [ ३६७