पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/४३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३८० ] ४-चुल्लवग्ग [ ३२१ ३--उस समय एक भिक्षुने दो संघादिसेसोंकी दो मास नक त्रुप ग्क्वी गई (प्रतिच्छन्न) दो आपत्तियाँ की थीं। उसको यह हुआ--'मैंने दो (तरहके) संघादिमेमोंकी दो मास तक प्रतिच्छन्न दो आपत्तियाँ की हैं। चलूँ, संघसे, ० दो मास प्रतिच्छन्न एक आपनिके लिये दो मासका परिवाम माँगूं। उसने संघसे दो मास प्रतिच्छन्न एक आपत्ति के लिये दो मासका परिवाम माँगा। संघने उसे ० एक आपनिक लिये दो मासका परिवास दे दिया। परिवास करते वक्त उसे लज्जा आई-'मैने ० दो आपनियाँ की हैं, और (पहिले) मुझे यह हुआ-० चलो संघसे दो मास प्रतिच्छन्न एक आपनिके लिये दो मासका परिवास माँगू। ० संघने मुझे ० एक आपत्ति के लिये दो मासका परिवास दे दिया। तब परिवास करने वक्त मुझे शरम मालूम हुई। चल, संघसे दो मास प्रतिच्छन्न दूसरी आपत्ति के लिये भी दो मासका परिवास माँगूं। उसने भिक्षुओंसे कहा--० । भगवान्से यह बात कही ।-- "तो भिक्षुओ! मंघ उस भिक्षुको दो मास प्रतिच्छन्न दूसरी आपत्तिके लिये भी दो मासका परिवास दे। 21 "और भिक्षुओ! इस प्रकार (पग्विास) देना चाहिये-- दो मासका परिवाम माँगता हूँ 100 संघको सूचित करे-०१ । "ग. धा र णा--'० संघने अमुक नामवाले भिक्षुको ० दुसरी आपत्तिके लिये भी दो मासका परिवास दे दिया। संघको पसंद है, इसलिये चुप है-~-ऐसा मैं इसे समझता हूँ। "भिक्षुओ! उस भिक्षुको तबसे लेकर दो मास तक पग्विास करना चाहिये ।" 22 -"यदि भिक्षुओ ! एक भिक्षुने दो संघादिमेमोंकी दो मास तक प्रतिच्छन्न दो आपत्तियां की हो। ०३ । संघने उसे ० दोनों आपत्तिके लिये दो मासका परिवाम दे दिया। । । । संघने उम भिक्षुको । दूसरी आपत्ति के लिये भी दो मासका परिवाम दे दिया। तो भिक्षुओ! उस भिक्षको तबसे लेकर दो मास तक परिवास करना चाहिये। 23 ५-“यदि भिक्षुओ! एक भिक्षुने दो संघादिमेमोंकी दो मास तक प्रतिच्छन्न दो आपनियां की हों। (वह उनमेंसे) एक आपत्तिको जानता है, दुसरीको नहीं जानता । वह जिम आपनिको जानता है उसके लिये. . .मंघमे दो मासका परिवास माँगता है। संघ उम भिक्षुको ० दो मामका पग्विाम देना है। परिवास करते वक्त उमे दूसरी आपत्ति भी मालूम होती है। उसको ऐसा होता है--'मने ० दो आपत्तियां की हैं। (वह उनमेंसे) एक आपत्तिको मैंने जाना, दुमरीको नहीं जाना। मंने जिग आपनिको जाना, उसके लिये...संघने दो मामका परिवाम मांगा। मंधने मुझे ० दो मामका परिवाम दे दिया। ० । परिवास करते वक्त (अब) मुझे दुसरी आपत्नि भी मालूम होती है। चन, संघी दो माग प्रनिन्छन्न दुसरी आपत्तिके लिये भी दो मानका परिवान मांग।' वह मंधने ० दुनरी आपनिने लिये भी दो मागका परिवास माँगता है। उसे संघ • दुसरी आपनिके लिये भी दो मामका पग्विाम देता है । तो भिक्षाओ! उस भिक्षुको तबसे लेकर दो मास तक परिबाम करना चाहिये। 24

-"यदि भिक्षुओ ! एक भिक्षने दो संघादिनेमांकी दो माग नक प्रतिच्छन्न दो आगनिया की

है। (उने उनमेने) एक आपनि याद है, मर्ग याद नहीं है। उसे जो आपनि याद है, उसके लिये... । "देखो चुल्ल ३६१ पृष्ठ ३७२-३ ('छ रातबाला मानन्ध'की जगहपर 'दो मामका परिदास' रखकर)। परिवाम पानंदाले भिक्षुके कर्तव्यके लिये देवो चमन ३.१ पृष्ट ३७२-८० । देखो चुल्ल ३९? (३) पृष्ठ ३८० (३)।