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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/४४५

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३८४ ] ४-चुल्लबग्ग [ ३६३२ जानता, रातके परिमाणको जानता है । ० नहीं याद रखता, ० याद रखता है । ० निस्सन्देह होता है, . सन्देह-युक्त होता है । (३) आपत्तिके परिमाणमें कुछ जानता है कुछ नहीं जानता; रातके परिमाणको जानता है। ० कुछ नहीं याद रखता; ० याद रखता है । ० कुछ सन्देह रखता है; ० सन्देह नहीं रखता। (ऐसेको) परिवास देना चाहिये। भिक्षुओ। इस प्रकार परिवास देना चाहिये ।" 41 परिवास-समाप्त - २ 144 ६३-दुबारा उपसम्पदा लेनेपर पहिलेके बचे परिवास आदि दंड (१) शेप परिवास (१) उस समय एक भिक्षु परिवास करते वक्त भिक्षु वेप छोड़ चला गया। उसने फिर आकर भिक्षुओंसे उपसम्पदा माँगी। भगवान्मे यह बात कही ।- "भिक्षुओ! यदि कोई भिक्षु परिवास करते वक्त भिक्षु वेप छोड़ चला गया हो, और वह फिर आकर भिक्षुओंसे उपसम्पदा माँगे । भिक्षु वेप छोड़ गये के लिये भिक्षुओ ! परिवास नहीं रहता। यदि वह फिर उपसम्पदा लेना चाहे, तो उसे वही पहिला परिवास देना चाहिये । पहिलेका दिया परिवास ठीक है, जितना परिवास पूरा हो गया, वह (भी) ठीक; बाकी (समय) के लिये परिवास करना चाहिये। 42 (२) "० परिवास करते वक्त (भिक्षुपन छोड़) श्रामणेर बन जाये। श्रामणेरके लिये भिक्षुओ ! परि- वास नहीं रहता। यदि वह फिर उपसम्पदा लेना चाहे, तो उसे वही पहिला परिवास देना चाहिये ।। 43 (३) "० परिवास करते पागल हो जाये। पागलको ० परिवास नहीं रहता । यदि फिर उसका पागलपन हट जाये, तो उसे वही पहिला परिवास देना चाहिये । ० (४) ० परिवास करते विक्षिप्त हो जाये। विक्षिप्त-चित्तको परिवास नहीं रहता । यदि वह फिर अविक्षिप्त चित्त हो, तो उसे वही पहिला परिवास देना चाहिये । ०१ । 45 (५) "० परिवास करते वे द न ट्ट (=बदहवास) हो जाये । ०१ । 46 (६) "० परिवास करते आपत्तिके न देखनेसे उत्क्षि प्त करे हो जाये । ०' ।" 47 (७) "० परिवास करते आपत्तिके प्रतिकार न करनेसे उत्क्षिप्तक हो जाये । ०१ । 48 (८) "० परिवास करते बुरी दृष्टिके न छोड़नेसे उत्क्षिप्तक हो जाये। ०१ ।" 49 (२) मूलसे-प्रतिकर्पण (९) भिक्षुओ ! कोई भिक्षु मूलसे-प्रतिकर्पणके योग्य हो भिक्षु-वेप छोड़ चला जाये, और वह फिर आकर उपमम्पदा लेना चाहे । भि-वेप छोड़कर चले गयेको मूलगे-प्रतिकर्षण नहीं रहता । यदि वह फिर उपसम्पदा लेना चाहे, तो उसे वही परिवाम देना चाहिये । पहिलेका दिया पग्विास ठीक है, जितना परिवास पूरा हो गया वह (भी) ठीक है, उन भिक्षुको मूलगे प्रतिकर्पण करना चाहिये। 50 (१०) "० थामणेर हो जाये, (११) '० पागल हो जाये 152 (१२) विक्षिप्त-चित्त हो जाये० (१३) "० वेदनट्ट हो जाये०३। 54 (१४) "० आपत्तिके न देखनेमे उत्क्षिप्तक हो जाये०३ 55 1 ३ ISI ३ 18 ३ 153 ३ ५ ऊपर (१) जैसा। २ देखो महावग्ग ९६४।५ पृष्ठ ३१८ । ऊपर (१) की भांति ।