पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/४४७

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३८६ ] ४-चुल्लवग्ग [ ३६४ख१ (२) मा मानत्त्वाह (१०) “यदि भिक्षुओ ! एक भिक्षु मानत्त्वके योग्य होते समय बीचमें अप्रतिच्छन्न (=प्रकट), परिमाणवाली बहुतसी संघादिसेसकी आपत्तियाँ करे, तो उस भिक्षुका मलसे-प्रतिकर्पण करना चाहिये ०१ । 99 (१६) "० परिमाणवाली भी, अपरिमाणवाली भी, प्रतिच्छन्न भी, अप्रतिच्छन्न भी०१ ।" 103 (३) मानत्त्वचारिक (१७) "० एक भिक्षु मानत्त्वका आचरण करते समय बीचमें०१ 112 (२८) "० परिमाणवाली भी, अपरिमाणवाली भी, प्रतिच्छन्न भी, अप्रतिच्छन्न भी०२।" (४) आह्वानाह (२९) '. एक भिक्षु आह्वानके योग्य होते (=आह्वानाह) समय बीचमें० २ । 130 (३७) "० परिमाणवाली भी, अपरिमाणवाली भी, प्रतिच्छन्न भी, अप्रतिच्छन्न भी० छत्तीस समाप्त I 21 २ 1" 139 ख मानत्त्व-- (१) गृहस्थ बन जाना क. ( १ ) “भिक्षुओ ! यदि एक भिक्षु बहुतसी संघा दि से स की आपत्तियोंको करके (उन्हें) न छिपा गृहस्थ वन जाता है। वह फिर उ प स म्प दा पाकर उन आपत्तियोंका प्रतिच्छादन नहीं करता, तो भिक्षुओ! उस भिक्षुको मानत्त्व देना चाहिये । 140 (२) "० प्रतिच्छादन न कर भिक्षु-वेप छोळ चला जाता है । वह फिर उपसम्पदा पाकर उन आपत्तियोंका प्रतिच्छादन करता है, तो भिक्षुओ ! उस भिक्षुको पहिलेके आपत्तिसमुदायमें प्रति- च्छन्न (आपत्तियों) की भाँति परिवास दे मानत्त्व देना चाहिये । I4I (३) "० प्रतिच्छादनकर० । ० उन आपत्तियोंको नहीं प्रतिच्छादन करता; ० परिवास दे मानत्त्व देना चाहिये । 142 ( ४ ) "० प्रतिच्छादन कर० । ० उन आपत्तियोंको प्रतिच्छादन करता है; ० उस भिक्षुको पहिलेके भी और पीछेके भी आपत्ति-स्कंधमें प्रतिच्छन्नकी भाँति परिवास दे मानत्त्व देना चाहिये। 143 (५) ० प्रतिच्छादन कर भी, अ-प्रतिच्छादन कर भी० । पहिले प्रतिच्छादित की गई आपत्तियोंका फिर प्रतिच्छादन नहीं करता, पहिले अ-प्रतिच्छादित की गई आपत्तियोंका अ-प्रतिच्छादन करता है; तो भिक्षुओ! उस भिक्षुको पहिलेके आपत्ति-स्कंधमें प्रतिच्छन्नकी भांति परिवास दे मानत्त्व देना चाहिये । 144 (६) "० प्रतिच्छादन कर भी, अप्रतिच्छादन कर भी० । पहिले प्रतिच्छादित की गई आग- त्तियोंका फिर प्रतिच्छादन नहीं करता, पहिले प्रतिच्छादित न की गई आपत्तियोंका अब प्रतिच्छादन करता है, तो भिक्षुओ ! उस भिक्षुको पहिलेके भी और अबके भी आपत्ति-समूहमें प्रतिच्छन्नकी भांति परिवास दे मानत्त्व देना चाहिये। 145 १ परिवासकी तरह यहाँ भी समझो। पृष्ठ ३८५ में परिवास (१-९) की भांति यहाँ भी समझो।