४०८ ] ? ४-चुल्लवग्ग [ ४९३३ करना ।०१ । भिक्षुओ ! यह छ अनुवाद-मूल अ नु वा द-अ धि क र णके मूल हैं। 105 (ख) “कौनसे तीन अकुशल-मूल अनुवाद-अधिकरणके मूल हैं ? जब०लोभयुक्त चित्तसे०, द्वेषयुक्त चित्तसे०, मोहयुक्त चित्तसे० अनुवाद करते हैं--'धर्म' या अधर्म' ०। 106 (ग) “कौनसे तीन कुशल-मूल अनुवाद- अधिकरणके मूल हैं ? जब भिक्षु लोभ-रहित चित्त हो अनु वा द करते हैं०, द्वेपरहित०, मोह-रहित०। 107 (घ) “कौनसा काम अनुवाद अधिकरण का मूल है ?--जब कोई (व्यक्ति) कुरूप, दुर्दर्शन- ओकोटिमक (=नाटा), बहुरोगी, काना, लूला, लंगड़ा, पक्षावात (लकवे) वाला होता है, और उसे लेकर (दूसरे) उसका अनु वा द करते हैं; ऐसी काया अनुवाद-अधिकरणका मूल होती है। 108 (ङ) “कौनसी वाणी अनुवाद-अधिकरणका मूल है ? - जब दुर्वचन (बोलनेवाला), दुर्मन, हकलाकर बोलनेवाला, होता है, जिसे लेकर उसका अनुवाद करते हैं; यह वाणी अनुवाद-अधि- करणका मूल है। 109 ग. "आ पत्ति-अ धि क र ण के मू ल,-क्या है आपत्ति-अधिकरण का मूल ?-आपत्तियाँ (= दोप) जिनसे उठते हैं वह० छ (आपत्ति-समुत्थान) आपत्ति-अधिकरणके मूल हैं । (१) (कोई) आपत्ति-कायासे उठती है, वचन और चित्तसे नहीं; (२) कोई आपत्ति वचनसे उठती है, काया और चित्तसे नहीं; (३) कोई आपत्ति काया और वचन (दोनों) से उठती है, चित्तसे नहीं; (४) कोई आपत्ति काया और चित्त (दोनों) से उठती है, वचनसे नहीं; (५) कोई आपत्ति चित्त और वचन (दोनों) से उठती है, कायासे नहीं; (६) कोई आपत्ति काय, वचन और चित्त (तीनों) से उठती है। यह छ आपत्ति-समुत्थान 'आपत्ति-अधिकरणके मूल हैं।' IIO घ. कृ त्य-अ धिक र ण-"कृत्य-अधिकरणका क्या मूल है ?--कृत्य-अधिकरणका एक मूल है संघ ।" III (३) अधिकरणोंके भेद (क) विवाद-अधिकरणके भे द—“(क्या) विवाद-अधिकरण कुशल (अच्छा), अकुगल (=बुरा), अव्याकृत (=न अच्छा न बुरा) होता है? -विवाद-अधिकरण (१) कुशल भी हो सकता है, (२) अकुशल भी०; (३) अव्याकृत भी हो सकता है ? “(१) कौनसा विवाद-अधिकरण कुशल है ?--जब भिक्षुओ ! भिक्षु अच्छे (=कुशल) चित्त से विवाद करते हैं-'धर्म है, अधर्म है' ० २ नाराजगीका व्यवहार... है। यह कहा जाता है, कुशल विवाद-अधिकरण। "(२) कौनसा० अकुशल है ? बुरे (=अकुशल) चित्तसे विवाद करते हैं-01 "(३) कौनसा० अव्याकृत है ?-० अव्याकृत (न अच्छे ही न बुरे ही) चित्तमे विवाद करते हैं। II2 (ख)अनु वा द अधि क र ण के भेद--" (क्या) अनुवाद-अधिकरण कुगल, अगल, अव्याकृत होता है ?- अनुवाद-अधिकरण (१) कुशल भी हो सकता है; (२) अकुगल भी०; (३) अव्याकृत भी हो सकता है। (G १ सम्मति उस समय रंगीन लकळीकी शलाकाओंसे ली जाती थी । शलाका वितरण करने- वालेको शलाकाग्रहापक कहते थे । देग्यो चुल्ल ४९३१ पृष्ठ ४०६ ।
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