४९३।४ ] विवाद आदि और अधिकरणके संबंध [ ४०९ "(१) ०?--जब० अच्छे चित्तसे शील भ्रष्ट होने का अनुवाद करते हैं। (२) ० बुरे चित्तसे० । (३)० न अच्छे-न बुरे चित्तसे० । II3 (ग)आ पत्ति-अ धि क र ण के भेद-"(क्या) आपत्ति-अधिकरण कुशल, अकुशल, अव्याकृत होता है ?--आपत्ति-अधिकरण (१) अकुशल भी हो सकता है; (२) अव्याकृत भी०; किन्तु० कुशल नहीं हो सकता । "(१) कौनसा० अकुशल है ?—जो जान, समझ,सोच, निश्चय करके वीतिक्कम (=व्यति ऋम) है; यह कहा जाता है अकुशल आपत्ति-अधिकरण । "(२) कौनसा० अव्याकृत है ?--जो बिना जाने विना समझे, विना सोचे, विना निश्चय किये व्यति-क्रम है; यह कहा जाता है अव्याकृत आपत्ति-अधिकरण। II4 (घ) कृत्य - अ धि क र ण -" (क्या) कृत्य-अधिकरण कुशल, अकुशल, अव्याकृत होता है? --कृत्य-अधिकरण (१) कुशल भी हो सकता है; (२) अकुशल०; (३) अव्याकृतः । “(१) कौनसा० कुशल है ? संघ कुशल (=अच्छे) चित्तसे जो कर्म अवलोकन कर्म, ज्ञप्ति- कर्म, अप्ति-हितीय-कर्म, नप्ति-चतुर्थ-कर्म करता है; यह कहा जाता है कुशल कृत्य- अधिकरण । “(२) ०?—संघ अकुशल चित्तसे जो क ० करता है। "(३)?--संघ अव्याकृत चित्तसे जो कर्म ० करता है; ० ।" IIS (४) विवाद आदि और उनका अधिकरणसे संबंध (क)-वि वा द और अधिक र ण--"(क्या) विवाद विवाद-अधिकरण, विवाद विना अधि- वारण, अधिकरण बिना विवाद, और अधिकरण और विवाद (दोनों ) (होते हैं ? )-(१) विवाद विवाद-अधिकरण हो सकता है; (२) विवाद विना अधिकरणके हो सकता है; (३) अधिकरण बिना विवादव हो सकता है; (४) अधिकरण और विवाद (दोनों साथ साथ ) हो सकते हैं । "(१) कौनसा बिवाद विवाद-अधिकरण होता है ? -जव भिक्षु विवाद करते हैं-'धर्म है ० " । वहाँ जो भंडन-बालह ०३ है; यह विवाद विवाद-अधिकरण है। 116 “(२) कौनसा विवाद विना अधिकरणका है ?--माताभी पुत्रके साथ विवाद करती है, पुत्र भी माताके साथ०, पिता भी पुत्रके साथ०, पुत्रभी पिताके साथ०, भाई भी भाईके साथ ०, भाई भी वहिन साथ०, वहिन भी भाईके साथ०, मित्रभी मित्रके साथ० । यह विवाद बिना अधिकरणके है। 117 "(३) कौनसा अधिकरण विना विवादका है ? अनुवाद-अधिकरण, आपत्ति-अधिकरण और कृत्य-अधिकरण यह अधिकरण विना विवादके हैं। II8 "(१) कौनसे अधिकरण और विवाद (दोनों साथ साथ ) होते हैं ?--विवाद-अधिकरणमें अधिकरण और विवाद (दोनों साथ साथ) होते हैं। 119 (स)-अनु वा द और अधिक र ण-"?-(१) अनुवाद-अधिकरण हो सकता है; (२) अनुवाद दिना अधिकरण; (३) अधिकरण विना अनुवाद०; (४) अधिकरण और अनुवाद (दोनो नाप साप) हो सकते हैं । "(१) कौनना अनुवाद अनुवाद-अधिकरण है ?-जद भिक्षु (दूसरे) भिक्षुका शील भ्रष्ट ० 'देखो चुल्ल ४१३ पृष्ट ४०६-७ । हेलो हपर ( विवाद-मूल जैना )। टेग्यो चुल्ल ४६३।१ पृष्ठ ४०६ ।
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