पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/४७१

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४१० ] ४-चुल्लवग्ग [ ४१३५ होनेका अनुवाद करते हैं । जो वहाँ अनुवाद० होता है, वह अनुवाद अनुवाद-अधिकरण है। 120 “(२)०?--माताभी पुत्रका अनुवाद (=शिकायत) करती है। 121 "(३) ०?-आपत्ति-अधिकरण, कृत्य-अधिकरण, विवाद-अधिकरण यह विना अनुवादक अधिकरण हैं । 122 "(४) ०?-अनुवाद-अधिकरणमें अधिकरण और अनुवाद (दोनों साथ साय) होते हैं। 123 (ग) आपत्ति और अधिक र ण के-"o?-(१) आपत्ति आपत्ति-अधिकरण हो सकती है; (२) आपत्ति बिना अधिकरण०; (३) अधिकरण विना आपत्ति०; (४) अधिकरण और आपत्ति (दोनों साथ साथ) हो सकती हैं। “(१) कौनसी आपत्ति आपत्ति अधिकरण है ?-पाँच आपत्ति स्कंध (=दोपोंके समूह) आपत्ति-अधिकरण हैं, सातों आपत्ति-स्कंध आपत्ति-अधिकरण हैं-यह आपत्ति आपत्ति-अधिकरण है। 124 "(२) ०?–स्रोत-आपत्ति, समापत्ति' की यह आपत्ति है, किन्तु अधिकरण नहीं।' 125 (३) कौन अधिकरण विना आपत्तिका है ?--कृत्य-अधिकरण, विवाद-अधिकरण, अनुवाद- अधिकरण; यह अधिकरण हैं किन्तु आपत्ति नहीं। 126 "(४) ०?-आपत्ति-अधिकरण, अधिकरण और आपत्ति (दोनों) साथ साथ हैं। 127 (घ) ४-कृ त्य-अ धि क रण -"o?--(१) कृत्य कृत्त्य-अधिकरण हो सकता है; (२) कृत्त्य विना अधिकरण०; (३) अधिकरण विना कृत्य०; (४) अधिकरण और कृत्त्य (दोनों साथ साथ) हो सकते हैं। “(१)०?--जो संघका कृत्य करना, करणीय करना, अवलोकन कर्म, ज्ञप्ति-कर्म, ज्ञप्ति- द्वितीय-कर्म, ज्ञप्ति चतुर्थ-कर्म, यह कृत्त्य कृत्य-अधिकरण है। 128 "(२)०?-आचार्यका काम (=कृत्त्य), उपाध्यायका कृत्य, एक उपाध्यायवाले (गुरु भाई) का कृत्त्य, एक आचार्यवाले (गुरुभाई) का कृत्त्य—यह कृत्त्य हैं, (किन्तु) अधिकरण नहीं। 129 “(३) ०?--विवाद-अधिकरण, अनुवाद अधिकरण आपत्ति-अधिकरण यह अधिकरण हैं, किन्तु कृत्त्य नहीं। 130 "(४) ०? -कृत्त्य-अधिकरण (ही) अधिकरण और कृत्त्य (दोनों) साथ साथ हैं ।" 13I (५) अधिकरणोंका शमन १-वि वा द-अधिक र ण-"विवाद-अधिकरण कितने श म थों (=शांतिके उपाय मिटानेके उपाय) से शान्त होता है ? विवाद-अधिकरण दो शमथोंसे शांत होता है-(क)-संमुख (=उप- स्थितिमें)-विनयसे; और (ख) यद्भयसिकसे भी क्या ऐसा भी। विवाद-अधिकरण हो सकता है, जो यद्भूयसिकके विना (सिर्फ) एक संमुख-विनयसे ही शान्त हो ? हो सकता है कहना चाहिये । 132 I–सं मुख वि न य से-"किस तरह ? जब भिक्षु (आपसमें) विवाद करते हैं-'धर्म क्षुओ! वह भिक्षु उस अधिकरणको (आपसमें) शान्त कर सकते हैं; तो भिक्षुओ ! है० २। यदि १ यहाँ आपत्तिका अर्थ प्राप्ति है । निर्वाणगामी स्रोतमें प्राप्त होनेको स्रोतआपत्ति कहते हैं। समाधिकी आपत्ति (-प्राप्ति) को समापत्ति कहते हैं। २ देखो चुल्ल० ४६३।१ पृष्ठ ४०६ ।