पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/४७२

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४३३१५ ] अधिकरणोंका शमन [ ४११ यह अधिकरण उपशान्त (=शान्त) कहा जाता है। किसके द्वारा उपशान्त ?--संमुख-विनय द्वारा । क्या है वहाँ संमुख-विनय ?--(१) संघके संमुख होना; (२) धर्मके संमुख होना; विनय (=नियम) के संमुख होना; (३) व्यक्तिके संमुख होना । "(१) क्या है संघके संमुख होना?--जितने भिक्षु कर्म-प्राप्त (=जिनका न्याय होनेवाला है) हैं वह आगये हों; (अनुपस्थित) छन्द (=vote) देने लायक भिक्षुओंका वोट लाया गया हो; संमुख (उपस्थित) हुए (भिक्षु) प्रतिक्रोश (कोसना) न करते हों; यह है वहाँ संघका संमुख होना । (२) क्या है संमुख-विनय होना ?--जिस विनय (=भिक्षु-नियम), जिस धर्म (=बुद्धके उप- देग) जिस गास्ताके शासनसे वह अधिकरण शान्त होता है, वह विनयका संमुख होना है । (३) वया है व्यक्तिका संमुख होना ?--जो विवाद करता है, और जिसके साथ विवाद करता है, दोनों अर्थी-प्रत्यर्थी (=वादी-प्रतिवादी) उपस्थित (=संमुखीभूत) रहते हैं; यह है वहाँ व्यक्तिका संमुख होना । भिक्षुओ! इन प्रकार शान्त हो गये अधिकरणको यदि कारक (=करनेवाला कोई पुरुप) फिरले उमाळे (उत्कोटन करे) तो (उसे); उ त्कोट न क-पाचित्तिय (=0प्रायश्चित्तीय) हो; छन्द (: rote) देनेवाला यदि (पीछेये) पछतावे (=खीयति), तो खी य न क-पा चि त्ति य हो। 133 २-"यदि भिक्षुओ! वह भिक्षु उस अघि क र ण (=मुकदमे) को उसी आवासमें नहीं शान्त कर सवाते ; नो.....उन भिक्षुओंको जिस आवास (मठ) में अधिक भिक्षु हों वहाँ जाना चाहिये । वह भिक्षु.. यदि उन आ वास में जाते वक्त रास्तेमें उस अधिकरणको शान्त कर सकें, तो भिक्षुओ ! वह अधिकरण मान्त कहा जाता है। किसके द्वारा शान्त कहा जाता है ?--संमुख-विनयसे। क्या है वहाँ संमुख दिनय? - तो खी य न क - पा चि तिय हो। 134

-"यदि भिक्षुओ ! वह भिक्षु उस आवासमें जाते वक्त रास्तेमें उस अधिकरणको नहीं शान्त

कर लवते; तो भिक्षुओ ! उन भिक्षुओंको उस आवासमें जा आ वा सि क (=मठ-निवासी) भिक्षुओंसे यह कहना चाहिये-आवुसो ! यह अधिकरण इस प्रकार पैदा हुआ, इस प्रकार उत्पन्न हुआ; अच्छा हो (आप) आयुप्मान् इस अधिकरणको धर्म वि न य-शास्ताके शासनसे जैसे यह अधिकरण चाल हो, वैसे इसे यान्त कर दें। यदि भिक्षुओ! आ वा सि क भिक्षु अधिक वृद्ध हों, और नवा- गन्ना (विवाद करनेवाले) भिक्षु अधिक नये; तो आवासिक भिक्षुओंको नवागन्तुक भिक्षुओंसे या कहना चाहिये--


जब तक मुहूर्त भर (आप) आयुप्मान् एक ओर रहें, तब तक हम (आपसमें)

मलाः (नणा) करें। यदि भिक्षुओ ! आवासिक भिक्षु अधिक नये हों, और नवागन्तुक मिन अधिना क; तो आवासिकः भिक्षुओंको नवागन्तुक निक्षुओंसे यह कहना चाहिये-'तो (आर) आयनान् मुहूर्तभर यही रहें, जब तक कि हम सलाह कर आयें।' यदि भिक्षुओ ! (आपसमें) का कान्ले आवामिन भिनुओंको ऐसा हो-'हम इन अधिकरणको धर्म, वि न य , गास्ताके गागन (उपदेश के अनुसार गान्त नहीं कर सकते; तो भिक्षुओ! उन आवानिक भिक्षुओंको उस मी बला करने लिये नहीं स्वीकार करना चाहिये । यदि भिक्षुशो! (आपसमें) मलाह करते - निमोनोगा हो---'हम इन अधिकरणको धर्म, वि न य , गानाके माननके अनुसार ने : बोशिशुओ ! उन आवानिक निक्षुओंको नवागन्तुक भिक्षुओने यह कहना चाहिये- नीकरण यने पैदा हुआ, कैन उसन्न हुभा-यह हमने कहो, नो हम ऐसे विग. लाई गासनको अनुसार गान करेंगे, उनने यह अच्छी तरह शान्त नमन अपकरणको (फैमरे के लिये म्बीकार करेंगे, यदि नुन आयुष्मान्, दादा की सास हुआ, यह हमने न कहोगे, तो हम जैन इन अधिकारको ": मन नलारान्त करेंगे, उनने यह अच्छी तरह माल न होगा। (नद)