पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/४७३

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४१२ ] ४-चुल्लवग्ग [ ४९३५ हम इस अधिकरणको फैसला करनेके लिये, नहीं स्वीकार करेंगे।' भिक्षुओ! इस प्रकार अच्छी तरह समझ, आवासिक भिक्षुओंको वह अधिकरण लेना चाहिये । भिक्षुओ! उन नवागन्तुक भिक्षुओंको आवासिक भिक्षुओंसे ऐसा कहना चाहिये-'यह अधिकरण जैसे उत्पन्न हुआ, जैसे पैदा हुआ वैसे हम आयुष्मानोंको बतलायँगे ; यदि (आप) आयुष्मान् इतने बीचमें इस अधिकरणको धर्म०से ऐसे शान्त कर सकें, कि यह अधिकरण अच्छी तरह शान्त हो जाये; तो हम इस अधिकरणको आयुप्मानोंको दे दें। यदि आयुष्मान् नहीं कर सकते०, तो हम इस अधिकरणको आयुष्मानोंको न देंगे, हम ही इस अधिकरणके स्वामी होंगे। भिक्षुओ ! इस प्रकार अच्छी तरह समझ नवागन्तुक भिक्षुओंको वह अधिकरण आवासिक भिक्षुओंको देना चाहिये । भिक्षुओ! यदि वह भिक्षु उस अधिकरणको शान्त कर सकते हैं, तो यह अधिकरण अच्छी तरह शान्त कहा जाता है। किसके द्वारा शान्त ?-संमुख-विनयसे ।। खी य न क पा चि त्ति य हो । 135 "भिक्षुओ! यदि उस अधिकरणके विचार करते वक्त उन भिक्षुओंमें अनर्गल बातें होने लगती हैं, भाषणका अर्थ नहीं समझ पळता, तो भिक्षुओ! अनु म ति देता हूँ ऐ से अधिक र ण को उ द्वा - हि का (= Select Committee) से श म न क र ने की । 136 II--उद्वाहिका, "भिक्षुओ! दस बातोंसे युक्त भिक्षुको उद्वाहिकाके लिये चुनना चाहिये- (१) सदाचारी (=शीलवान्) होता है; प्रा ति मोक्ष (=भिक्षु नियमों) के संवर (= संयम) से रक्षित आचार-गोचरसे युक्त, छोटे दोपोंमें भी भयखानेवाला हो विहरता है। शिक्षापदों ( आचार-नियमों) को ग्रहणकर अभ्यास करता है। (२) बहुश्रुत-श्रुतधर, (उपदेशोंको अच्छी तरह संचय करनेवाला) हो, जो वह धर्म आदि-कल्याण, मध्य-कल्याण, और अन्त-कल्याण है सार्थक, संव्यंजन केवल (=विशुद्ध)-परिपूर्ण-परिशुद्ध-ब्रह्मचर्यको बतलाते हैं, वह धर्म, उसने बहुत सुने हैं, बचनमें धारण किये मनसे परिचित, दृष्टि (=सिद्धान्त) से परीक्षित होते हैं। (३) भिक्षु-भिक्षुणी, दोनों ही प्रा ति मोक्षको विस्तार-पूर्वक याद किये अच्छी तरह विभाजित (=समझे), सुप्रवन्ति (=सुव्याख्यात) सूत्र और अनुव्यंजन (=विस्तार)से सुविनिश्चित =सुमीमांसित होते हैं। (४) और दृढ हो विनयमें स्थित हो, (५) दोनों हो वादी-प्रतिवादी दोनों हीको समझाने, बुझाने, जतलाने, दिखलाने, मानने मनवानेमें समर्थ हो। (६) अधिकरणकी उत्पत्तिके शान्त करने में चतुर जतलाने, दिखवाने, मानने मनवानेमें समर्थ हो। (६) अधिकरणकी उत्पत्तिके शान्त करनेमें चतुर हो। (७) अधिकरणको जानता हो । (८) अधिकरणके कारण (= समुदय) । (२) अधि- करणके नाश (=oनिरोध); (१०) अधिकरणके नाशकी ओर ले जानेवाले मार्ग (=प्रतिपद्) को जानता हो । भिक्षुओ! इन दस बातोंसे युक्त भिक्षुओंके उ द्वा हि का के लिये चुननेकी मैं अनुमति देता हूँ। 137 "और भिक्षुओ! इस प्रकार चुनाव करना चाहिये । “(१) या च ना–पहिले उस भिक्षुसे पूछना चाहिये । "फिर चतुर समर्थ भिक्षु संघको सूचित करे- क.न प्ति-"भन्ते! संघ मेरी सुने-हमारे इस अधिकरणपर विचार करते समय अनर्गल वातें होने लगती हैं, भापणका अर्थ नहीं समझ पळता, यदि संघ उचित समझे तो मंघ, इस अधिकरणको उद्वाहिकासे गमन करनेके लिये अमुक अमुक भिक्षुओंको चुने—यह सूचना है। ख. अनुश्रा व ण -(१) "'भन्ते ! संघ मेरी सुने, संघ इस अधिकरणको उद्वाहिकाने गमन करनेके लिये अमुक अमुक भिक्षुओंको चुन रहा है; जिस आयुष्मान्को पसंद हो वह चुप रहे, जिनको पमंद न हो वह बोले । +