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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/४७४

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O ४१३५ ] अधिकरणोंका शमन [ ४१३ (२) "'दूसरी बार भी, भन्ते ! संघ० । (३) “'तीसरी बार भी, भन्ते ! सं०। ग.धा र णा-"'संघने इस अधिकरणको उद्वाहिकासे शमन करनेके लिये अमुक अमुक भिक्षुको चुन लिया । संघको पसंद है, इस लिये चुप है-ऐसा मैं इसे समझता हूँ।' "भिक्षुओ ! यदि वह भिक्षु उद्वाहिका (=उन्बाहिका) से उस अधिकरणको शान्त कर सकते हैं, तो भिक्षुओ ! यह अधिकरण शान्त कहा जाता है। किसके द्वारा शान्त ? सं मुख - वि न न य से । ० उक्कोट निक-पा चित्तिय हो । 138 "भिक्षुओ! यदि उस अधिकरणपर विचार करते समय वहाँ कोई (ऐसा) धर्म-कथिक (= धर्मका व्याख्याता) हो, जिसे न सूत्र ही आता हो न सू त्र वि भंग १ (=सुत्तविभंग विनय) ही; वह अर्थको बिना समझे व्यंजन (अक्षर) की छाया पकळ अर्थका अनर्थ करता हो; तो भिक्षुओ ! चतुर समर्थ भिक्षु उन भक्षुओंको सूचित करे- क.न प्ति-"आयुष्मानो ! मेरी सुनो, यह अमुक नामवाला धर्म कथिक भिक्षु है, अर्थका अनर्थ कर रहा है; यदि आयुष्मानोंको पसंद हो तो अमुक नामवाले भिक्षुको उठाकर हम बाकी इस अधिकरणको शान्त करें--यह सूचना है।०२ 139 "यदि भिक्षुओ! वह भिक्षु उस भिक्षुको उठाकर उस अधिकरणको शान्त कर सके, तो... वह अधिकरण गान्त कहा जाता है। किसके द्वारा शान्त ? सं मुख-वि न य द्वारा। ३ उनकोटनिक पाचिन्तिय हो । "भिक्षुओ ! यदि उस अधिकरणका विचार करते समय वहाँ कोई (ऐसा) धर्मकथिक हो, जिने मूत्र आता हो, किन्तु मूत्र-वि भंग नहीं। वह अर्थको बिना समझे व्यंजनकी छाया पकड़ अर्थका अनर्थ करता हो; तो भिक्षुओ ! चतुर समर्थ भिक्षु उन भिक्षुओंको सूचित करे- वा. नप्ति "० आयुप्मानो ! मेरी सुनो। यदि आयुप्मानोंको पसंद हो, तो अमुक भिक्षुको उठ कर बावीस अधिकरणको शान्त करें—यह सूचना है ०।० । "यदि भिक्षुओ ! वह भिक्षु उस भिक्षुको उठाकर उस णको शान्त कर सकें, तो... वह अधिकरण शान्त कहा जाता है। किसके द्वारा शान्त ? सं मुख-वि न य द्वारा। ० उक्कोटनिक- पाचित्तिय हो। 140 ]]]. य द भू य सि का ने निर्णय -"भिक्षुओ ! यदि वह भिक्षु उद्वाहिकासे उस अधि- करणको शान्त न कर सकते हों, तो भिक्षुओ! वह (उद्वाहिकावाले) भिक्षु उस अधिकरणको संघके सुपर्द कर दें--'भन्ते ! हम इस अधिकरणको उद्वाहिकाने नहीं मान्त कर सकते, संघ इस अधि- करणको भान्त करें। "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ ऐसे दस प्रकारके अधिकरणको यद्भूयमिकामे थान्त करनेकी । 141 । शलाकारहापकका चुनाव-"भिक्षुओ ! पाँच दातोंसे युक्त भिक्षुको शला का ग्र हा प क बनना चाहिये-(१) जो न छन्द के रास्ते जाता हो; ०६ | 142 व में प्तिः । (अनुधावण) ० । २. पार पा--पने अमुव नामदाले भिक्षुको गलाका-ग्रहापक चुन लिया। मंघको पसंद ! दिनपदे मूल-नियम या प्रातिमोक्ष (पृष्ट ५-६०) । देखो चुल्ल ४६३।५ पृष्ठ ४१२ । रिसो.पर। 'चुल्ल ४९२।४ (क) पृष्ट ४०२ ।