पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/४७६

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४९३१५] अधिकरणोंका शमन [ ४१५ २–स कर्ण ज ल्प क श ला का ग्रा ह-"कैसे भिक्षुओ ! सकर्ण जल्पक-शलाकाग्राह होता है ?-उस शलाकाग्रहापकको एक एक भिक्षुके कानके पास जाकर कहना चाहिये-'यह इस पक्षवालेकी शलाका है, यह इस पक्षवालेकी शलाका है, जिसे चाहते हो उसे ग्रहण करो।' (उसके शलाका) ग्रहण कर लेनेपर कहना चाहिये-'मत किसीसे कहना।' यदि (वह) जाने कि अधर्म वा दी बहुत हैं, ० । भिक्षुओ! इस प्रकार गूढक शलाकाग्राह होता है। 146 ३-वि वृत क श ला का ग्राह-"कैसे भिक्षुओ! विवृतक शलाकाग्राह होता है ? यदि (वह) जाने कि धर्मवादी ' बहुतर (=बहुमतमें) हैं, तो बेफिक्र हो खुली (=विवृतक) शलाकायें ग्रहण कराये । भिक्षुओ! इस प्रकार विवतक शलाकाग्राह होता है।" 147 ख. अनु वा द - अ धि क र ण-अनुवाद-अधिकरण कितने (प्रकारके) शमथोंसे शांत होता है ? --चार शमथोंसे शांत होता है; (१) संमुख-विनय; (२) स्मृति-विनय; (३) अमूढ विनय ; और (४) तत्पापीयसिक। 148 (क्या कोई) अनुवाद-अधिकरण अमूढ-विनय और तत्पापीयसिकाको छोळ, (सिर्फ) संमुख- विनय और स्मृति-विनय दो ही शमथोंसे शांत होनेवाला हो सकता है ?—हो सकता है-कहना चाहिये । किस तरह ? -जब भिक्षु (एक) भिक्षुको निर्मूल ही शीलभ्रष्ट होनेका लांछन लगाते हैं; तो भिक्षुओ ! पूरी स्मृति रखनेवाला होनेपर उस भिक्षुको स्मृति - वि न य देना चाहिये । 149 ia. स्मृति - वि न य देने का ढंग-"और भिक्षुओ ! इस प्रकार (स्मृति-विनय) देना चाहिये--उस भिक्षुको संघके पास जा ० २ ऐसा कहना चाहिये-'भन्ते ! भिक्षु मुझे निर्मूल ही शीलभ्रष्ट होनेका लांछन लगाते हैं, सो मैं पूरी स्मृति रखनेवाला हो संघसे स्मृति-विनयकी या च ना करता हूँ। दूसरी बार भी ० । तीसरी बार भी 'भन्ते ! ० ।' "तब चतुर समर्थ भिक्षु संघको सूचित करे-०२ “ग. था र णा--'संघने इस नामवाले पूरी स्मृति रखनेवाले भिक्षुको स्मृति-विनय दे दिया। संघको पसंद है, इसलिये चुप है-ऐसा मैं इसे समझता हूँ। "भिक्षुओ ! यह अधिकरण शांत (=फैसलागुदा) कहा जाता है । किससे शांत ?--संमुख विनयने भी, स्मृति-विनयसे भी। यया है यहाँ संमुख विनय ?-०३ b. स्मृति दिन य--"क्या है वहाँ स्मृति विनय ?-जो कि स्मृतिविनयवाले कर्मवी बिया-करना, उपगमन--अभ्युपगमन, स्वीकार, अपरित्याग है, यह है उसका स्मृतिविनय । भिक्षुओ ! इस प्रकार शांत हुये अधिकरणको यदि कारक (=लगानेवाला) फिरसे उभाड़े ( उन्कोटन करे), तो दुक्कोट न क - पा चि त्ति य हो । छन्द देनेवाला यदि पछतावे, तो ग्बी य न क- पा चिनिय हो। 150 "(क्या किली) अनुवाद अधिकरणमें स्मृति वि न य और त त्पा पी य मि का को छोळ (सिर्फ) संगल-विनय और अमूद-विनय दो ही शमथ हो सकते हैं ? हो सकते हैं-कहना चाहिये। किम प्रकार ?-जर निभु उन्मन (पागल), चित्त-विपर्यान (=विक्षिप्त चित्तता) को प्राप्त ता: जरमन भिभुने बहुत धनण विरुद्ध (आचरण) ० किया होता है। उने भिक्षु उन्मत्त ० तो गिने वाले प्रमाण-विरत कर्मोके लिये दोषारोपण कर चोदित करते हैं याद है आयुष्मान्ने समानी पति की' वह ऐसा बोलता है-'आनो ! मैं उन्नत्त ० हो गया था, उन्मत ० हो 'रेको महानग प्ठ ३६४ । हेलो एल्ल.० ४.१५ पृष्ट ४१०-११ । प्ति, और तीन अनुश्रावन करने चाहिये।