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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/४७८

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? ! ४९३५ ] अधिकरणोंका शमन [४१७ सिकासे । क्या है वहाँ संमुख-विनयमें? ०१ । क्या है वहाँ तत्पापीयसिकामें ? जो वह पापीयसिका-कर्मकी त्रिया-करना ० । खी य न - पा चि त्ति य हो। 153 (ग) आ पत्ति - अधिक र ण का श म न-"आपत्ति-अधिकरण कितने शमथोंसे शांत होता है ?- संमुख-विनय, प्रतिज्ञातकरण, और तिणवत्यारकसे । “(क्या कोई ऐसा) आपत्ति-अधिकरण है जो एक ति ण व त्था र क शमथको छोळ (बाकी) संमुख-विनय और प्रतिज्ञातकरण दो शमथोंसे गांत हो सके ?--हो सकता है-कहना चाहिये। किस प्रकार?--यहाँ एक भिक्षुने लघुक-आपत्ति (=छोटे अपराध) की होती है। तव भिक्षुओ ! वह भिक्षु एक भिक्षुके पास जा एक कंधेपर उत्तरासंग कर (अपनेसे) वृद्ध भिक्षुओंके चरणोंमें वन्दना कर, उकळू बैठ हाथ जोळ ऐसा कहे-'आवुस ! मैंने इस नामके भिक्षुने आपत्ति की है, उस आपत्तिकी प्रतिदेशना (=Confession) करताहूँ।' "उस भिक्षुको कहना चाहिये-देखते (=दिलसे अनुभव करते) हो (उस आपत्तिको)?" 'हाँ देखता हूँ। 'भविष्यमें संयम करना ।' "भिक्षुओ! यह अधिकरण शांत कहा जाता है । किससे शांत ? संमुख-विनयसे और प्रति ज्ञा त- करण (=स्वीकार) से। क्या है वहाँ संमुख-विनयमें ? ०' । क्या है वहाँ प्रतिज्ञातकरणमें ?–जो (यह) प्रतिनातकरण-कर्मकी क्रिया—करना ० दुक्को ट क- पा चि त्ति य हो । "ऐसा कर पाये, तो ठीक; न कर पाये तो भिक्षुओ ! उस भिक्षुको बहुतसे भिक्षुओंके पास जा ० ऐसा कहना चाहिये-- --- c-- उस आपत्तिकी प्रतिदेगना करता हूँ।' "उन भिक्षुओंको कहना चाहिये -'दखते हो' ?" 'हां, देखता हूँ। 'भविष्य में संयम करना। दृ वको टि क - पा चि त्ति य हो । "ऐसा कर पाये तो ठीक; न कर पाये तो भिक्षुओ ! उस भिक्षुको संघके पास जा ० ऐसे कहना चाहिये-०१ खी य न क - पा चि त्ति य हो ।” 154 (वया कोई ऐला) आपत्ति-अधिकरण है जो एक प्रतिज्ञातकरण गमथको छोळ (बाकी) संमुख- विनय और तिणवत्थारक. दो गमयोंने गान्त हो सके ?-हो सकता है-कहना चाहिये। किस प्रकार ?-- यहाँ भंटन. कलह, करते भिक्षुओंने बहुतने भ्रमण-विरोधी-अपराध किये हैं ० २ । ग. धारणा--'हमने इन आपत्तियोंकी संघके बीच तिण व त्या र क देगना कर दी। संघको पसंद है, इसलिये चुप है-ऐना में इने समझता हूँ। "भिक्षुओ ! यह अधिकारण गांत कहा जाता है । किमलेगांत ?- मुव - वि न य और नि ण व त्या र कने। क्या है वहां नंमुख-दिनयमें ?-०३ । क्या है वहां निणवयारको ?--जो कि किणवत्मान्य-कर्मदी निमा=नन्ना ही य न क - पा त्रिनिय हो। 155 (C) च्या अधिकार प-कृत्य-अधिकरण कितने गमयोंने गांत होता है ?-वृत्त्य- अति महिना पद रामनांत होता है।" 156 चतुत्य सनथक्खंधक समाप्त ॥४॥ 'उ.पर ही जैसा। हेलो पल.० ४५ पृष्ट ४१०-११ । देखो चल्ल० ४९२१६ पृष्ट ४०४-५ ।