पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/४७९

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५-क्षुद्रकवस्तु-स्कन्धक १-स्नान, लेप, गीत, आम-खाना, सर्प-रक्षा, लिंगच्छेद, पात्र-चीवर थैली आदि । २--विहारमें चबूतरे, शाला, कोठरी, आसन आदि । ३--पंखा, छात्ता, छींका, दण्ड, नख-केश-कनखोदनी, अंजनदानी । ४--संघाटी, कमरबन्द, घुण्डी मुद्धी, वस्त्र पहिननेका ढंग । ५--बोझ ढोना, दतवन, आग-पशुसे रक्षा । ६--बुद्ध-वचनकी भाषा अपनी-अपनी, व्यर्थकी विद्याका न पढ़ना, सभामें बैठने के नियम, लहसुनका निषेध । ७--पाखाना, वृक्ष-रोपण, वर्तन-चारपाई आदि सामान । ६१-स्नान, लेप, गीत, आम-खाना, सर्प-रक्षा, लिंगच्छेद पात्र-चीवर, थैली आदि , ?-राजगृह (१) स्नान १-उस समय बुद्ध भगवान् रा ज गृह में विहार करते थे। उस समय पड़ व र्गीय भिक्षु नहाते हुए वृक्षसे शरीरको रगळते थे, जंघाको, वाहुको, छातीको, पेटको, भी। लोग खिन्न होते, धिक्कारते थे–'कसे यह शाक्य-पुत्रीय श्रमण नहाते हुए वृक्षसे०, जैसे कि मल्ल (=पहलवान्) और मालिश करनेवाले'।...। भगवान्ने भिक्षुओंको संबोधित किया- "भिक्षुओ! नहाते हुए भिक्षुको वृक्षसे शरीर न रगळना चाहिये, जो रगळे उसको 'दुष्कृत'की आपत्ति है।" 1 २-उस समय पड्वर्गीय भिक्षु नहाते समय खम्भेसे शरीरको भी रगळते थे "भिक्षुओ! नहाते समय भिक्षुको खम्भेसे शरीरको न रगळना चाहिये, जो रगड़े उसको दुश्कट (दुप्कृति) की आपत्ति है ।" 2 ३-० पड्वर्गीय भिक्षु ० दीवारसे शरीरको भी रगळते थे ०।- "भिक्षुओ! • दीवारसे शरीरको न रगळना चाहिये, ० दुक्क ट की आपत्ति है।" 3 पड्वर्गीय भिक्षु अस्थान (अ ह्वा न) २ पर नहाते थे। लोग हैरान ० होते थे- (०) जैसे कि काम भोगी गृहस्थ । ० भगवान्से यह बात कही ० ।- "भिक्षुओ! अह्वा न पर नहीं नहाना चाहिये, ० दुक्कट ० ।” 4 ४-० १छोटे दोषोंकी बातोंका अध्याय । काष्ठके चार पावोंवाली बळी-बळी चौकियाँ घाटपर रक्खी रहती थीं, जिनपर नहाने के सुगंधित चूर्णको विखेरकर उनपर लेटकर शरीर रगळते थे (--अट्ठकथा)। ४१८ ] [ ५६११