पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/५०

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निदान [ ७ उचित समझे तो उपोसथ करे और प्रातिमोक्ष ( नियमों )की आवृत्ति करे । क्या है संघका पूर्व कृत्य ? आयुष्मानो ! (अपनी) शुद्धि (=अ-दोषता )को कहो, हम प्रातिमोक्षकी आवृत्ति करेंगे, सो हम सभी शान्त हो अच्छी तरह सुनें और मनमें करें। जिससे कोई दोष हुआ हो वह प्रकट करे । दोष न होने पर चुप रहना चाहिये । चुप रहने पर मैं आयुष्मानोंको शुद्ध (=दोष-रहित ) समकूँगा । जैसे एक एक आदमीसे पूछनेपर उत्तर देना होता है, वैसे ही इस प्रकारकी सभामें तीन बार तक पुकारा जाता है। किन्तु, जो भिक्षु तीन बार पुकारनेपर याद रहते भी, विद्यमान दोषको प्रकट नहीं करता, वह जान बूझकर झूठ बोलनेका दोषी होता है । आयुष्मानो ! भगवान्ने जान बूझकर झूठ बोलनेको अन्तरायिक ( =विघ्नकारक ) कर्म कहा है; इसलिये याद रखते हुए दोष -युक्त भिक्षुको शुद्ध होनेकी कामनासे विद्यमान दोषको प्रकट करना चाहिये; (दोषोंका) (अपनेमें ) प्रकट करना उसके लिये अच्छा होता है। आयुष्मानो ! निदान कह दिया गया। अब मैं आयुष्मानोंसे पूछता हूँ-क्या इन (आप सब ) (निदानमें कही बातों)से शुद्ध हैं ? दूसरी बार भी पूछता हूँ-क्या इनसे शुद्ध हैं ? तीसरी बार भी पूछता हूँ, क्या इनसे शुद्ध हैं ? आयुष्मान परिशुद्ध हो हैं, इसी- लिए चुप हैं-ऐसा मैं इसे धारण करता हूँ , इति । निदान समाप्त