पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/४९४

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५०२।२ ] चंक्रम, जन्ताघर [ ४२९ "हाँ, आवुसो! जो वह अल्पेच्छ० भिक्षु थे, वह हैरान० होते थे- । --सचमुच०" 10- "भिक्षुओ! रास्तेमें जाते जलछक्का माँगनेपर देनेसे इन्कार नहीं करना चाहिये, जो न दे उसे दुक्क ट का दोप हो। 95 "भिक्षुओ! विना जलछक्केके रास्तेमें नहीं जाना चाहिये, दुक्कट ० । 96 "यदि जलछक्का न हो, तो संघाटीके कोनेसे ही छानकर पीनेका इरादा रखना चाहिये ।" ६२-बिहार-निर्माण (१) नवकर्म (=इमारत वनानेका काम) तब भगवान् क्रमशः चारिका करते जहाँ वै शा ली थी वहाँ गये । वहाँ भगवान् वैशालीमें म हा व न की कूटा गा र शाला में विहार करते थे। उस समय भिक्षु न व क र्म (नई इमारत बनवाना) करते थे, जलछवका काम न दे सकता था। भगवान्से यह बात कही ।- "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ, डंडेमें लगे जलछक्केकी।" 97 डंडे में लगा जलछक्का भी काम न दे सकता था 101-- "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ ओ त्थ र क (=छन्ना) की।" 98 उस समय भिक्षु मच्छरोंसे सताये जाते थे। ०।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ, मसहरीकी।" 99 उस समय वैशाली में अच्छे अच्छे भोजोंका सिलसिला लगा हुआ था। भिक्षु अच्छे अच्छे भोजोंको खाकर शरीरके अभिसन्न (=सन्न) होनेसे बहुत बीमार रहा करते थे। तब जी व क को मा र भृत्य किसी कामसे वैशाली गया। जीवक कौमारभृत्यने... होनेसे बीमार पळे देखा। देखकर जहाँ भगवान् थे, वहाँ गया। जाकर भगवान्से अभिवादनकर एक ओर बैठा। एक ओर बैठे जीवक कौमारभृत्यने भगवान्से यह कहा- "भन्ते ! इस समय वैशालीमें अच्छे अच्छे भोजोंका सिलसिला लगा हुआ है। भिक्षु० बहुत बीमार पळे हुए हैं। अच्छा हो, भन्ते ! भगवान् भिक्षुओंके लिये चं क्र म (=टहलनेकी जगह) और जन्ताघर (स्नानगृह) की अनुमति दें, इस प्रकार भिक्षु वीमार न पळेंगे।" तव भगवान्ने जीवक कौमारभृत्यको धार्मिक कथा द्वारा... समुत्तेजित-संप्रहर्पित किया। नव जीवक कौमारभृत्य० प्रहर्पित हो आसनसे उठ भगवान्को अभिवादनकर प्रदक्षिणाकर चला गया। तव भगवान्ने इसी संबंधमें इसी प्रकरणमें धार्मिक कथा कह भिक्षुओं को संबोधित किया- (२) चंक्रम, जन्ताघर "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ, चंक्रम और जंताघरकी।" 100 उस समय भिक्षु ऊभळ खाभळ चंक्रमपर टहलते थे, पैर दर्द करते थे । भगवान्से यह बात कही "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ, समतल करनेकी।" 10I चंत्रम नीची कुर्मीका था, पानी लग जाता था।- "०अनुमति देता हूँ, ऊँची कुर्सीके करनेकी।" 102 चिनाई गिर पळती थी।- "अनुमति देता हूँ ईट, पत्थर और लकळी-तीन प्रकारकी चुनाईकी।" 103