पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/४९६

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co 60 " (4 ५७२।३ ] कोष्ठक [ ४३१ "०अनुमति देता हूँ मिट्टीको वासनेकी ।" 118 जन्ताघरमें आग कायाको जलाती थी।- "०अनुमति देता हूँ पानी लाकर रखनेकी।" 119 थालीमें भी पात्र में भी पानी लाते थे।- "०अनुमति देता हूँ, पानीके स्थान (=उदकाधान) की, शराव (=पुरवे) की।" 120 तृणसे छाया जन्ताघर कूळेसे भर जाता था ।- '०अनुमति देता हूँ घेरकर लीपने-पोतनेकी ।" 121 जन्ताघरमें कीचळ हो जाती थी- '०अनुमति देता हूँ ईट, पत्थर और लकळी-(इन) तीन प्रकारके बिछावकी।" 122 "०अनुमति देता हूँ, धोनेकी।" 123 पानी लग जाता था- "० अनुमति देता हूँ, पानीको नालीकी।" 124 उस समय भिक्षु जन्ताघरमें ज़मीनपर बैठते थे, शरीरमें खुजली होती थी ।-- "०अनुमति देता हूँ, जन्ताघरकी चौकीकी।" 125 उस समय जन्ताघर घिरा न होता था।- "अनुमति देता हूँ, ईट, पत्थर और लकळी (इन) तीनके प्राकारोंसे (जन्ताघरको) घेरने की।" 126 (३) कोष्ठक कोष्ठक (द्वारका कोठा) न होता था।- "०अनुमति देता हूँ कोष्ठककी ।"...127 "०अनुमति देता हूँ ऊँची कुर्सीके (कोष्ठक) की ।"... 128 "०अनुमति देता हूँ, ईट, पत्थर और लकळी तीन प्रकारकी चिनाईकी।"... 129 "०अनुमति देता हूँ तीन प्रकारकी सीढ़ियोंकी-ईंटकी सीढ़ी, पत्थरकी सीढ़ी और लकळीकी सीढ़ीकी।". ...130 "अनुमति देता हूँ वाँहींकी ।"...I3I "०अनुमति देता हूँ किवाळ०१ आविजनरज्जुकी ।"...132 "०अनुमति देता हूँ मेंडरी वनानेकी ।" 133 उस समय कोष्ठकमें तिनकोंका चूरा गिरता था ।-- "०अनुमति देता हूँ, ओगुम्बनकर०२ पंचपटिकाकी ।” 134 कीचळ होता था ।- "०अनुमति देता हूँ, मरुम्ब (चूर्ण) फैलानेकी।" 135 नहीं पूरा पड़ता था- "अनुमति देता हूँ पदरसिला (=गिट्टी) विछानेकी ।" 136 पानी पळा रहता था- "०अनुमति देता हूँ, पानीकी नालीकी ।" 137 11 (1 44 'चुल्ल० ५९२।२ पृष्ठ ४३० (112) । 'चुल्ल० ५९२।२ पृष्ठ ४३० (107)