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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/५१२

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५६६।२ ] झूठी विद्याओंका न पढ़ना [ ४४५ (४) वृक्षपर चढ़ना १–उस समय षड्वर्गीय भिक्षु वृक्षपर चढ़ते थे। 0--- -जैसे वानर 10-- "भिक्षुओ! वृक्षपर न चढ़ना चाहिये, दुक्कट ० " २-उस समय एक भिक्षुके को स ल देशमें श्रावस्ती जाते समय रास्तेमें एक हाथी निकला। तव वह भिक्षु दौळकर वृक्षके नीचे गया, किन्तु सन्देहमें पळकर पेळपर न चढ़ सका। वह हाथी दूसरी ओर चला गया। तब उस भिक्षुने श्रावस्तीमें जा यह वात भिक्षुओंसे कही। ०-- '०अनुमति देता हूँ, काम होनेपर पोरिसाभर और आपत्कालमें यथेच्छ वृक्षपर चढ़नेकी।"237 ! 236 ६६-बुद्धवचनको अपनी अपनी भाषामें, झूठी विद्या न पढ़ना, सभामें बैठनेका नियम, लहसुनका निषेध (१) बुद्धवचनको अपनो अपनी भाषामें उस समय यमेळ य मे ळ ते कु ल नामक ब्राह्मण जातिके सुन्दर (कल्याण) वचनवाले, सुन्दर वचन बोलनेवाले दो भाई भिक्षु थे। वह जहाँ भगवान् थे वहाँ गये, जाकर भगवान्को अभिवादन कर एक ओर बैठे। एक ओर बैठे उन भिक्षुओंने भगवान्से यह कहा- "भन्ते ! इस समय नाना नाम, गोत्र, जाति कुल, के (पुरुष) प्रव्रजित होते हैं, वह अपनी भाषामें बुद्ध व च न को (कहकर उसे) दूषित करते हैं । अच्छा हो भन्ते ! हम वुद्धवचनको छ न्द' में बना दें।" भगवान्ने फटकारा-० । फटकारकर धार्मिक कथा कह भगवान्ने भिक्षुओंको संबोधित किया- "भिक्षुओ! बुद्ध-वचनको छ न्द में न करना चाहिये, ०दुक्कट०।" 238 "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ अपनी भाषामें बुद्धवचनके सीखनेकी।" 239 (२) झूठो विद्याओंका न पढ़ना १-उस समय षड्वर्गीय भिक्षु लो का य त (-शास्त्र) ३ सीखते थे। लोग हैरान० होते थे-- • जैसे वामभोगी गृहस्थ । ०।- “भिक्षुओ! लो का य त नहीं सीखना चाहिये, ०दुक्कट० ।” 240 २--उस समय पड्वर्गीय लो का य त को पढ़ाते । ०--जैसे कामभोगी गृहस्थ ।०-- “भिक्षुओ ! लो का य त नहीं पढ़ाना चाहिये, ०दुक्कट० ।” 241 ३--उस समय पड्वर्गीय भिक्षु ति र च्छा न - वि द्या' पढ़ते थे ।०--कामभोगी गृहस्थ । ०-- "भिक्षुओ! तिरच्छान-विद्या नहीं सीखना चाहिये, ०दुक्कट०।". . .242 -"भिक्षुओ! तिरच्छान-विद्या नहीं पढ़ानी चाहिये, दुक्कट ० ।" 243 ३ १ वेदकी भाँति संस्कृतमें (-अट्टकथा) । अपनी भाषाते यहाँ मगधकी भाषासे मतलब है (अट्ठकथा) । सामुद्रिक आदि।