५६७।२] पाखाना [ ४४७ "० अनुमति देता हूँ, पेसावदानकी।” 249 ३-तकलीफ़के साथ पेसाब करते थे।-- "०अनुमति देता हूँ, पेसाबके पावदान (=पस्साव-पादुका)की।" 250 ४-पेसाबका पावदान खुली (जगहमें) था। भिक्षु पेसाब करने में लजाते थे। 0-- "०अनुमति देता हूँ, ईट, पत्थर या लकळीकी चहारदीवारी (प्राकार) से घेरनेकी।" 25 I ५---पेसाबदान खुला रहनेसे दुर्गध करता था ।-- '०अनुमति देता हूँ, पिहानकी।” 252 (२) पाखाना १-उस समय भिक्षु आराममें जहाँ तहाँ पाखाना करते थे, आराम गंदा होता था।-- "०अनुमति देता हूँ, एक ओर पाखाना करनेकी ।". . .25 3 २ 'अनुमति देता हूँ, संडास (-वच्चकूप) की।" 254 ३-संडासका किनारा टूटता था। ०- "०अनुमति देता हूँ, ईंट, पत्थर या लकळीसे चिननेकी।" 255 ४-संडास नीची मनका था, पानी भर जाता था ।-- 'अनुमति देता हूँ, मनको ऊँची करनेकी।" 256 ५-चिनाई गिर जाती थी।- '०अनुमति देता हूँ, ईट, पत्थर या लकळीसे चिननेकी।" 257 ६-चढ़ने में तकलीफ़ पाते थे ।- "अनुमति देता हूँ, ईट, पत्थर या लकळीकी सीढ़ी बनानेकी।" 258 ७-चढ़ते वक्त गिर जाते थे।- '० अनुमति देता हूँ, बाँहीं लगानेकी।" 259 ८-भीतर बैठकर पाखाना होते गिर जाते थे।- '०अनुमति देता हूँ, फ़र्श बनाकर वीचमें छेद रख पाखाना होनेकी।" 260 ९--तकलीफ़के साथ वैठे पाखाना होते थे।- "०अनुमति देता हूँ, पाखानेके पायदानकी।" 261 वाहर पेसाब करते थे।-- "०अनुमति देता हूँ, पेसावकी नाली वनानेकी।" 262 १०-अवलेखण (=पोंछनेका) काष्ठ न था ।-- "०अनुमति देता हूँ, अवलेखण काष्ठकी।" 263 ११-अवलेखण-पिठर (=०ढेला) न था ।-- "०अनुमति देता हूँ, अवलेखण-पिठरकी।" 264 १२-मंडास खुला रहनेसे दुर्गध देता था ।-- "०अनुमति देता हूँ, पिहान (=ढक्कन) की ।" 265 १६-वली जगहमें पाखाना होते सर्दीमे भी गर्मीसे भी पीळित होते थे।- "अनुमति देता हूँ, वच्च - कु टी (=पायखानेके घर)की।" 266 १४-वच्चकुटीमें किवाळ न था ।- 'अनुमति देता हूँ, किवाळ, पिट्टिसंघाट (=बिलाई), उदुक्खलिक (मलइ), उत्तर-पासतः (=पटदेहर), अग्गलवट्टि (=पटदेहरका छेद), कपिसीसक (बनरमूळीबूटी), मूचिक 14
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