पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/५१६

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५९७४ ] ताँबे, लकळी, मट्टीके भाँडे [ ४४९ नाना प्रकारके अना चा र को करते थे। भगवान्से यह बात कही।-- "भिक्षुओ! नाना प्रकारके अनाचार नहीं करने चाहिये। जो करे उसे दुक्कटका दोप हो।" 281 (४) ताँबे, लकळी, मट्टोके भाँडे उस समय आयुष्मान् उ रु वेल का श्य प के प्रबजित होनेपर संघको बहुतसे ताँवे (लोह), लकळी, मिट्टीके भांडे मिले थे। तब भिक्षुओंको यह हुआ-'क्या भगवान्ने ताँवेके वर्तनकी अनुमति दी है या नहीं दी है ? लकळीके वर्तनकी०? मिट्टीके वर्तनकी० ?' भगवान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ, पहरणी ( मारनेके हथियार.)को छोळ सभी लोहेके भाँडोंकी, आसन्दी (=कुर्सी) पर्लंग, लकळीके पात्र, और लकळीके खळाऊँको छोळ सभी लकळीके भाँडोंकी, कतक (=झाँवा) और कुम्भकारिका (=मिट्टीके पकाये घळे) को छोळ सभी मिट्टीके भांडोंकी।" 282 खुद्दकवत्थुक्वन्धक समाप्त ।।५।। .

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