पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/५१७

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६-शयन-आसन स्कन्धक १-विहार और उसका सामान । २- --विहारके रंगादि और नाना प्रकारके घर । ३- नया मकान बनवाना, अग्रासन अपिंडके योग्य व्यक्ति जेतवन-स्वीकार । ४--विहारकी चीजोंके उपयोग अधिकार, आसनग्रहणके नियम । ५--विहार और उसके लिये सामानका बनवाना, न वाँटनेकी वस्तुएँ, वस्तुओंका हटाना या परिवर्तन, सफ़ाई। ६--संघके बारह कर्मचारियोंका चुनाव । ६१-विहार और उसका सामान १-राजगृह तव (१) राजगृह श्रेष्ठोका विहार बनवाना १-उस समय वुद्ध भगवान् रा ज गृह के वेणु व न कलन्दकनिवापमें विहार करते थे । उस समय (तक) भगवान्ने भिक्षुओंके लिये शयन-आसनका विधान न किया था, और वह भिक्षु जहाँ तहाँ-जंगल, वृक्षके नीचे, पर्वत, कंदरा, गिरिगुहा, स्मशान, वनप्रस्थ (=जंगल), चौळे (मैदान) पुआलके गंजमें विहार करते थे । वह समयपर जंगल० पुआलके पुंज वहाँसे, सुन्दर गमन-आगमन, अवलोकन-विलोकन, (अंगोंके) समेटने-पसारनेके साथ नीचे नज़र करके ईर्या पथ' से युक्त हो निकलते थे। जगृ ह क श्रेष्ठी पूर्वाह्नमें वागको गया। राजगृहक श्रेष्ठीने पूर्वाह्णमें उन भिक्षुओं को जंगलसे० ईर्यापथसे युक्त हो निकलते देखा। देखकर उसका चित्त प्रसन्न हो गया। तब राजगृहक श्रेष्ठी जहाँ वह भिक्षु थे, वहाँ गया। जाकर उन भिक्षुओंसे यह बोला- "भन्ते ! यदि मैं विहार वनवाऊँ, तो क्या मेरे विहार में (आप सब) वास करेंगे?" "गृहपति ! भगवान्ने विहारोंका विधान नहीं किया है।" "तो भन्ते ! भगवान्से पूछकर मुझसे कहना।" "अच्छा, गृहपति !"- (कह) राजगृहक श्रेष्ठीको उत्तर वह भिक्षु जहाँ भगवान् थे, वहाँ गये। जाकर भगवान्को अभिवादनकर एक ओर बैठे। एक ओर बैठे उन भिक्षुओंने भगवान्से यह कहा-- "भन्ते ! राजगृहक श्रेष्ठी बिहार वनवाना चाहता है, भन्ते ! कैसे करना चाहिये ?" भगवान्ने इनी संबंधमें इसी प्रकरणमें धार्मिक कथा कह भिक्षुओंको संबोधित किया-- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ पाँच (प्रकारकी) लेनो (=लयनों निवास स्थानों) की- (१) विहार, (२) अद्ध्योग, (=गरळकी तरह टेढामकान), (३) प्रासाद, (४) हर्म्य (ऊपरका कोठा) अच्छी रहन-सहन । नागरिक राजकीय पदाधिकारी, Sheriff. Yue] 135?!?