पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/५१८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

६११२ ] तीनों काल और चारों दिशाओंके संघको विहारका दान [४५१ और (५) गुहा ।" तव वह भिक्षु जहाँ राजगृहक श्रेष्ठी था, वहाँ गये; जाकर राजगृहक श्रेष्ठीसे वोले- "गृहपति ! भगवान्ने विहारकी आज्ञा दे दी, अब जिसका तुम काल समझो (वैसा करो)।" तब राजगृहक श्रेष्ठीने एकही दिनमें साठ विहार बनवाये । तव राजगृहक श्रेष्ठीने विहारोंको तैयार करा जहाँ भगवान् थे वहाँ गया। जाकर भगवान्को अभिवादनकर एक ओर बैठा । एक ओर बैठे राजगृहक श्रेष्ठीने भगवान्से यह कहा- "भन्ते ! भगवान् भिक्षु.. संघसहित कलका मेरा भोजन स्वीकार करें।" भगवान्ने मौनसे स्वीकार किया। तब राजगृहक श्रेष्ठी भगवान्की स्वीकृति जान आसनसे उठ भगवान्को अभिवादनकर प्रदक्षिणाकर चला गया। तब राजगृहके श्रेष्ठीने उस रातके बीत जानेपर उत्तम खाद्य भोज्य तैयार करा भगवान्को कालकी सूचना दी- "भन्ते ! (भोजनका) समय है, भात तैयार है।" तब भगवान् पूर्वाह्ण समय पहिनकर पात्र-चीवर ले जहाँ राजगृहक श्रेष्ठीका घर था, वहाँ गये, जाकर भिक्षु-संघके साथ विछे आसनपर बैठे। तब राजगृहका श्रेष्ठी बुद्धप्रमुख भिक्षु-संघको अपने हाथ से उत्तम खाद्य भोज्य द्वारा संतर्पितसंप्रवारितकर, भगवान्के भोजनकर पात्रसे हाथ हटा लेनेपर एक ओर बैठ गया। एक ओर बैठे राजगृहके श्रेष्ठीने भगवान्से यह कहा- "भन्ते ! पुण्यकी इच्छासे स्वर्गकी इच्छासे मैंने यह साठ विहार बनवाये हैं, भन्ते! मुझे उन विहारोंके वारेमें कैसे करना चाहिये?" (२) तीनों काल और चारों दिशाओंके संघको विहारका दान "तो गृहपति ! तू उन साठ विहारोंको आगत-अनागत (तीनों कालके) चातुर्दिश (= चारों दिशाओं अर्थात् सारी दुनियाके) भिक्षु-संघके लिये प्रतिष्ठापित कर।" "अच्छा, भन्ते !" (कह) राजगृहके श्रेष्ठीने भगवान्को उत्तर दे उन साठ विहारोंको आगत- अनागत चातुर्दिश संघको प्रदान कर दिया। तब भगवान्ने इन गाथाओंसे गृहके श्रेष्ठी (के दान) को अनुमोदित किया- "सर्दी गर्मीको रोकता है, और क्रूर जानवरोंको भी, सरीनृप और मच्छरोंको, और शिशिरमें वर्षाको भी॥(१)। जव घोर हवा पानी आनेपर रोकता है, लयन (=आश्रय) के लिये, सुखके लिये ध्यान और विपश्यन (ज्ञान) के लिये ॥(२)। संघके लिये विहारका दान बुद्धने श्रेष्ठ कहा है, इसलिये पंडित पुरुप अपने हितको देखते ॥(३)। रमणीय विहारोंको वनवाये, और वहाँ बहुश्रुतोंका वास कराये, और उन्हें सरलचित्त (भिक्षुओं) को अन्न-पान, वस्त्र और शयन-आसन प्रसन्न चिनमे प्रदान करे ।। (४)। (तव) वह उने मारे दुःखोंके दूर करनेवाले धर्मको उपदेशते हैं, जिन धर्मको यहाँ जानकर (पुरुष) मलरहित हो निर्वाणको प्राप्त होता है" |(५)। 'चार प्रकारको गुहायें होती है-इंटकी गुहा, पत्थरकी गुहा, लकळीकी गुहा, मिट्टीकी गुहा।