पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/५२

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६११३-४ ] १-पाराजिक [ ९ .. (३) मनुष्य-हत्या ३–जो भिनु जान कर मनुष्यको प्राणसे मारे, या (आत्म-हत्याके लिये ) शस्त्र खोज लाये, या मरनेकी तारीफ़ करे, मरनेके लिये प्रेरित करे-अरे पुरुष ! तुझे क्या (है) इस पापी दुर्जीवन से ? (तेरे लिये)जोनेसे मरना अच्छा है ; इस प्रकारके चित्त-विचारसे इस प्रकारके चित्त-संकल्पसे अनेक प्रकारसे मरनेकी जो तारीफ़ करे, या मरनेके लिये प्रेरित करे तो वह भिक्षु पाराजिक होता है (भिक्षुओंके साथ) सहवासके अयोग्य होता है। (४) दिव्यशक्तिका दावा ४-जो भिन्तु नविद्यमान्, दिव्य-शक्ति (=उत्तर-मनुष्य-धर्म२ )=अलम् म्-आर्य-ज्ञान- दर्शनको, अपनेमें वर्तमान कहता है-“ऐसा जानता हूँ, ऐसा देखता हूँ," तब दूसरे समय 9 -'मूल कुछ नहीं है, वहाँ नारिकेलको फोड़ गरी खा खोपड़ीको फेंक देते हैं; (वह ) इंधनका काम देता है ।' 'इस भिक्षुके हाथके कामका क्या मूल्य होगा ?'-'मासा या मासेसे कम ।' 'क्या सम्यक-सम्बुद्धने कहीं मास या सासेसे कमकी (चोरी )के लिए पाराजिककी व्यवस्था देनेके बारे में कहा है ? ऐसा कहनेपर,–'साधु, साधु, ठीक कहा, ठीक विचार किया'-एक ओरसे (कह लोगों ने ) साधुवाद दिया । उस समय भातिक राजाने भी चैत्यकी वंदनाके लिये नगरसे निकलते वक्त उस शब्दको सुना । (-अट्ठकथा )। वसम राजा ( लङ्कामें ६६-११० ई० )की देवी बीमार पड़ी । एक स्त्रीके आकर पूछनेपर महापद्म स्थविरने-मैं नहीं जानता-( यह ) न कह, इस प्रकार भिक्षुओंके साथ बात की। सिंहलद्वीपमें अभय नामक चोर (=डाकू ) पाँच सौ अनुयायियोंके साथ एक जगह छावनी बाँधकर चारों ओर तीन योजन तक लूटमार करता था। ( जिसके कारण ) अनुराधपुर निवासी कलम्वु नदीके भी पार नहीं जाते थे। चैत्यगिरिके रास्तेपर लोगोंका जाना बन्द हो गया था। तब एक दिन ( वह ) चोर-चैत्यगिरिको लू-- ( सोच ) चला। आरामके नौकरोंने देख कर दीर्घभाणक (=दीर्घनिकाय के पंडित ) अभय स्थविर से कहा । (-अट्ठकथा )। उत्तर-मनुष्य-धर्म=(१ १) ध्यान, (२) विमोक्ष, (३ ) समाधि, (४) समापत्ति, (५) ज्ञान-दर्शन, ( ६ ) मार्ग-भावना, (७) फल-साक्षात्कार, (८) क्लेश-प्रहाण (९) विनीवरणता, (१०) शून्यागारमें चित्तकी अभिरति (=अनुराग ) । 'अलम्-आर्य-ज्ञान तीन विद्यायें दर्शन । जो ज्ञान है वही दर्शन है, जो दर्शन है वही ज्ञान है । विशुद्धापेक्षी-गृही होनेकी इच्छासे, या उपासक होनेकी इच्छासे, या आरामिक (=आराम- सेवक ) होनेकी इच्छासे, या श्रामणेर होनेकी इच्छासे । ध्यान=(१) प्रथमध्यान, ( २ ) द्वितीयध्यान ( ३ ) तृतीयध्यान, (४) चतुर्थध्यान । विमोक्ष=( . ) शून्यता-विमोक्ष, (२) अनिमित्त-विमोक्ष, ( ३ ) अ-प्रणिहित-विमोक्ष । समाधि=(5) शून्यता-समाधि, ( २ ) अनिमित्त०, (३) अप्रणिहित० । समापत्ति=( 3 ) शुन्यता-समापत्ति, (२) अनिमित्त० (३) अप्रणिहित । ज्ञान-तीन विद्यायें। मार्ग-भावना=( 5 ) चार स्मृति-प्रस्थान, (२) चार सम्यक-प्रधान, (३) चार ऋद्धि- पाद, ( १ ) पाँच इन्द्रिय, (५) पाँच बल, (६ ) सात योध्यंग, ) आर्य-अष्टांगिक-मार्ग। ३ ७ २