पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/५२०

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( 14 . " .21 ६७११५ ] चारपाई, चौकी आदि [४५३ मीडीसे देह दुखने लगती थी।- "०अनुमति देता हूँ वेतकी चारपाईकी।"14 उस समय संघको स्मशान में फेंकी म सा र क ( गद्दीदार बेंच) चारपाई मिली थी। ०-- "०अनुमति देता हूँ, मसारक मंचे ( चारपाई)की।" 15 "अनुमति देता हूँ, मसारक चौकी (=पीठ) की।" 16 उस समय संघको स्मशानवाली बुन्दिका (-चादर) से बँधी चारपाई मिली थी।- "०अनुमति देता हूँ, बुन्दिकाबद्ध चारपाईकी।"...17 "०अनुमति देता हूँ, बुन्दिकाबद्ध चौकीकी।"...18 "०अनुमति देता हूँ, कुलीरपादक' चारपाईकी।"... 19 'अनुमति देता हूँ, कुलीरपादक चौकीकी।". . .20 "०अनुमति देता हूँ, आहच्च-पादक मंचेकी।". "०अनुमति देता हूँ, आहच्चपादक पीठकी।" 22 उस समय संघको आसन्दिका (=चौकोर पीठ) मिली थी।-- "०अनुमति देता हूँ, आसन्दिकाकी।"...23 "०अनुमति देता हूँ, ऊँची आसन्दिकाकी।". . .24 "०अनुमति देता हूँ, सप्तांग (=कुर्सी ? )की।". . .25 "०अनुमति देता हूँ, ऊँचे सप्तांगकी।"...26 '०अनुमति देता हूँ, भद्रपीठ (-वेंतकी चौकी) की।". . .27 '०अनुमति देता हूँ, पी ठि का' की।"...28 '०अनुमति देता हूँ, एलकपादक की।". . .29 '०अनुमति देता हूँ, आमलकवण्टिक की।". . .30 '० अनुमति देता हूँ, फलक (=तख्त) की।". . .3 I "०अनुमति देता हूँ, कोच्छक (खस या मूंज) की।". . .32 "अनुमति देता हूँ, पुआलके पीढ़ेकी।” 33 उस समय पडवी य भिक्षु ऊँची चारपाईपर सोते थे। लोग विहारमें घूमते समय देखकर हैरान होते थे-जैसे कामभोगी गृहस्थ 10-- "भिक्षुओ! ऊँची चारपाईपर न सोना चाहिये, जो सोये उसे दुक्कटका दोप हो।"34 उस समय एक भिक्षुको नीची चारपाईपर सोते वक्त साँपने काट खाया। भगवान्से यह बात कहीं।- 'अनुमति देता हूँ, चारपाईमें ओट (देने) की।"35 उस समय पड्वर्गीय भिक्षु ऊँचे चारपाईके ओट रखते थे, और चारपाईके ओटोंके साथ . .: सोते थे10- “भिक्षुओ ! ऊँचे चारपाईके ओटोंको नहीं रखना चाहिये, जो रक्खे उसे दुक्कटका दोप हो। अनुमति देता हूँ, आठ अंगुल नकदी चारपाईके ओटकी ।"36 विती और चौकोर वेदीकी भाँति । गद्दीदार चौदी। आदलेके आकारकी बहुतसे पैरोंवाली चौकी ।