पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/५२५

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४५८ ] ८-त्रुल्लबग्ग [ fam ०, आलम्बन-बाहुकी।" 102 अग्निशालामें किवाळ न था।-- "० ०, किवाळ, ०१ आविजन-रज्जुकी।" I03 अग्निशालामें तिनकेका चूरा गिरता था।-- "० ०, ओगुम्बन करके ० २ चीवर (टाँगने ) के बाँस-रम्मीकी।" 104 (१०) आराम आराम (=भिक्षु-आश्रम) घिरा न होता था। गोरू बकरी आकर रोपे (पौयों) को नुकसान करते थे।०- "०अनुमति देता हूँ, वाँसकी बाढ़ या काँटेकी वाढ (=बाट), अथवा परिखा (खाई) मे रोकनेकी।" 105 कोष्ठक (=फाटक) न था ।--और उसी प्रकार गोरू बकरी आकर रोपे (पौधों) को नुक- सान करते थे।- "०० अनुमति देता हूँ, कोष्टक (=फाटक), आणेसी ५ जोड़े किवाळ, तोरण और परिश (=पहियेवाली किवाळ) की।" 106 कोष्ठक (नौबतखाना) में तिनकेका चूरा गिरता था।-- अनुमति देता हूँ ओगुम्बन करके ० २ पंचपटिकाकी।" 107 आराममें कीचळ होता था।-- • अनुमति देता हूँ मम्म्ब बिखेरनेकी।" 108 नहीं ठीक होता था।- अनुमति देता हूँ प्रदरशिला (-पत्थरकी पट्टी) बिछानेकी।" 109 पानी लगता था।- मति देता हूँ, पानीकी नालीकी।" I IO (११) प्रासाद-छत उस समय म ग ध रा ज सेनिय बिम्बि सा र संघके लिये चूना मिट्टी (=सुधामत्तिका ) में लिपा प्रासाद बनाना चाहता था। तब भिक्षुओंको यह हुआ--'क्या भगवान्ने छतकी अनुमति दी है. या नहीं। भगवान्मे यह बात कही।-- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ पाँच प्रकारके छतोंकी--ईटकी छत, गिलाकी छन, चुने (- सुधा) की छत, तिनकेकी छत और पत्नेकी छत ।" III o 14 11 o (1 o प्रथम भाणबार समाप्त (३-अनाथपिडिककी दीक्षा, नवकर्म (=नया मकान बनवाना) अग्रासन अग्रपिंडके योग्य व्यक्ति, तित्तिर जातक, जेतवन-स्वीकार (2) अनाथपिडिककी दीक्षा उस समय अनाथ-पिडिया गृहपति (को) गजगह के - श्रेष्ठी का बहनोई था; किनी ताम 'दन्यो पुष्ट ४५२ 'देखो पृष्ठ ८५२ । मंद नि० ११:११८ नी।