पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/५३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

11 11 ४६८ ] ४-चुल्लवग्ग [ ६४४१६ (=छन्द) के रास्ते जाये, (२) न द्वेष०, (३) न भय०, (४) न मोह०; (५) गये आयेको जाने 10 123 "और भिक्षुओ! इस प्रकार चुनना चाहिये-पहिले (उस) भिक्षुसे पूछकर चतुर-समय भिक्षु-संघको सूचित करे- "क. ज्ञप्ति । "ख. अनु श्रावण "ग. धा र णा-'संघने इस नामवाले भिक्षुको शयन-आसन-ग्रहापक चुन लिया। संवको पसंद है, इसलिये चुप है-ऐसा मैं इसे धारण करता हूँ।' (५) शयन-आसन-ग्रहापक तव शयन-आसन-ग्रहापक भिक्षुओंको यह हुआ—'कैसे शयन-आसन ग्रहण कराना चाहिये ?' भगवान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ, पहिले भिक्षुओंको गिननेकी, भिक्षुओंको गिनकर, शय्या (Seats) गिननेकी, शय्या गिनकर प्रथमकी (अच्छी) शय्यासे ग्रहण करानेकी।" 124 प्रथमकी शय्यासे ग्रहण कराते हुए शय्याओंको बँचा लिया।- "०अनुमति देता हूँ प्रथमके विहारसे ग्रहण करानेकी।" 125 प्रथमके विहारसे ग्रहण कराते हुए विहारोंको बँचा दिया।- "०अनुमति देता हूँ प्रथमके परिवेणसे ग्रहण करानेकी।" 126 '०अनुमति देता हूँ, अतिरिक्त भाग भी देनेकी, अतिरिक्त भाग दे देनेपर दूसरा भिक्षु आजाये, तो इच्छाके विना नहीं देना चाहिये।" 127 उस समय भिक्षु सीमासे बाहर ठहरेको शयन-आसन ग्रहण कराते थे।- "भिक्षुओ ! सीमासे वाहर ठहरेको शयन-आसन नहीं ग्रहण कराना चाहिये, दुक्कट ०।" 128 उस समय भिक्षु शयन-आसन ग्रहण करा सव समयके लिये रोक रखते थे। '०शयन-आसन ग्रहण करा, सब समयके लिये नहीं रोकना चाहिये, दुक्कट० । ० अनुमति देता हूँ वर्पाके तीन मासों तक रोक रखने की, और (वाकी) ऋतुओंके समय नहीं रोकने की।" 129 तव भिक्षुओंको यह हुआ-'शयन-आसनके ग्रहण कितने (प्रकारके) हैं ?' भगवान्से यह वात कही।- "भिक्षुओ! यह तीन शयन-आसनके ग्रहण हैं-(१) पहिला; (२) पिछला; (३) वीचमें न छोळा। (१) आपाढ़ पूर्णिमाके एक दिन जानेपर प हि ला (शयन-आसन) ग्रहण कराना चाहिये; (२) आपाढ़ पूर्णिमाके मासभर बीत जानेपर पिछला०; (३) प्रवारणा (आश्विन पूर्णिमा) के एक दिन जानेपर आनेवाले वर्षावासके लिये वीचमें न छोळा ग्रहण कराना चाहिये ।-भिक्षुओ! यह तीन शयन-आसन-ग्राह् हैं।" 130 द्वितीय भाणवार समाप्त ॥२॥ (६) एकका दो स्थान लेना निपिद्ध उस समय आयुष्मान् उ प नं द शाक्यपुत्र श्रावस्तीमें गयन-आसन ग्रहणकर एक गाँवके आवाम में गये। वहाँ भी (उन्होंने ) गयन-आसन ग्रहण किया। तब भिक्षुओंको यह हुआ-'आबुगो! यह आयुप्मान् उपनन्द गाक्यपुत्र भंडन, कलह, विवाद, वकवाद और मंघमें झगळा करनेवाले हैं। यदि यह यहाँ वर्षावाम करेंगे, तो हम मुग्यपूर्वक न बान कर सकेंगे। अच्छा हो इन्हें पूछे। तब उन भिक्षुओंने आयुष्मान् उपनन्द शाश्यपुत्रसे यह कहा- O