पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/५५०

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ol o?! ७९२।१] देवदत्तका विद्रोह [४८३ नहीं। देवदत्त ही जिम्मेवार है । और भिक्षुओ! इस प्रकार (प्र का श नी य कर्म) करना चाहिये-- चतुर समर्थ भिक्षु संघको सूचित करे-. I "क. ज्ञप्ति ० । ख. अनुश्रावण "ग. धा र णा-'संघने देवदत्तका राजगृहमें प्रकाशनीय कर्म कर दिया–पूर्वमें देवदत्त अन्य प्रकृतिका था, अब अन्य प्रकृतिका । (अव) देवदत्त जो (कुछ) काय-वचनसे करे उसका वुद्ध, धर्म और संघ जिम्मेवार नहीं; देवदत्त ही जिम्मेवार है । संघको पसंद है, इसलिये चुप है-ऐसा मैं इसे धारण करता हूँ।" तव भगवान् ने आयुष्मान् सारिपुत्रको संबोधि किया- "तो सारिपुत्र ! देवदत्त का तू राजगृहमें प्रकाशन कर।" "भन्ते ! मैंने पहिले राजगृहमें देवदत्तकी प्रशंसा की-गो धि-पुत्त (=देवदत्त ) महद्धिक ( =दिव्य शक्तिधारी )-महानुभाव है गोधि-पुत्र । कैसे मैं भन्ते ! राजगृहमें देवदत्तका प्रकाशन करूँ ?" "सारिपुत्र ! तूने तो यथार्थ ही देवदत्तकी प्रशंसा की थी न-गोधिपुत्त महद्धिक है "हाँ, भन्ते !' "इसी प्रकार सारिपुत्र ! यथार्थ ही देवदत्तका राजगृहमें प्रकाशन कर।" "अच्छा, भन्ते !"-कह आयुष्मान् सारिपुत्रने भगवान्को उत्तर दिया।" तव भगवान्ने भिक्षुओंको संबोधित किया- "तो भिक्षुओ ! संघ सारिपुत्रको राजगृहमें देवदत्तका प्रकाशन करनेके लिये चुने-पहिले देवदत्त "और भिक्षुओ ! इस प्रकार चुनाव करना चाहिये । पहिले सारिपुत्रको पूछना चाहिये । फिर चतुर समर्थ भिक्षु संघको सूचित करे- "क. ज्ञप्ति० । ख. अनु श्रा व ण ० । “ग. धा र णा-'संघने राजगृहमें देवदत्तका प्रकाशन करनेके लिये ० आयुप्मान् सारिपुत्रको चुन लिया । संघको पसंद है । इसलिये चुप है-ऐसा मैं इसे धारण करता हूँ।" संघके द्वारा चुन लिये जानेपर, आयुप्मान् सारिपुत्रने बहुतसे भिक्षुओंके साथ राजगृहमें प्रवेश कर राजगृहमें दे व दत्त का प्रकाशन किया-'पूर्वमें देवदत्त अन्य प्रकृतिका था ० । जो मनुष्य कि श्रद्धालुः अप्रसन्न, पंडित, बुद्धिमान थे वह (सोचते थे)-'जिस तरह (कि) भगवान् राजगृहमें देवदन का प्रकाशन करवा रहे हैं, उनसे यह छोटी बात न होगी।' ० 12 5२-देवदत्तका विद्रोह (१) अजातशत्रुको वहकाकर पितासे विद्रोह कराना नव देवदत्त जहाँ अजात-शत्रु कुमार था, वहाँ गया । जाकर अजातगत्रु कुमारमे बोला- "कुमार पहिले मनुष्य दीर्घायु (होते थे). अब अल्पाय । हो सकता है, कि तुम कुमार रहते ही मर जाओ। इनलिये कुमार ! तुम पिताको मारकर राजा होओ; मैं भगवान्को मारकर बुद्ध होउंगा।" नटना/मां---