पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/५५१

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४८४ ] ४-चुल्लवग्ग [ ७९२२२ शत्रु कुमारको० अन्तःपुरमें प्रविष्ट होते देखा । देखकर पकळ लिया। कुमारसे कहा- "कुमार तुम क्या करना चाहते थे ?" "पिताको मारना चाहता था।" "किसने उत्साहित किया ?" "आर्य देवदत्तने ।" किन्हीं किन्हीं महामात्त्योंने यह सम्मति दी—'कुमारको भी मारना चाहिये, देवदत्तको भी, भिक्षुओंको भी।' किन्हीं किन्हीं ने०--'न कुमारको मारना चाहिये, न देवदत्तको, न भिक्षुओंको, राजाको कहना चाहिये, जैसा राजा कहें, वैसा करेंगे।' तब वह महामात्त्य अजातशत्रुको ले जहाँ मगध राज श्रेणिक बिंबिसार था, वहाँ गये, जाकर विविसारको यह बात कह सुनाई। "भणे! महामात्त्यने क्या सम्मति दी है ?" "किन्हीं किन्हीं महामात्त्योंने देव ! यह सम्मति दी—'कुमारको भी मारना चाहिये जैसा राजा कहें, वैसा करेंगे।" "भणे! वुद्ध, धर्म संघका क्या दोप है। भगवान्ने तो पहिले ही राजगृहमें देवदत्तका प्रकाशन करवा दिया है।" तव जिन महामात्त्योंने यह सलाह दी थी—'कुमारको भी मारना चाहिये० ; उन्हें पदसे पृथक कर दिया, और जिन महामात्त्योंने यह सलाह दी थी-'न कुमारको मारना चाहिये०' उन्हें ऊँचे पदपर स्थापित किया। तव वह महामात्य अजातशत्रुको ले जहाँ मगधराज श्रेणिक विविसार था, वहाँ गये। जाकर राजा०को यह बात कह सुनाई। तब राजा ने अजात-शत्रु कुमारको कहा- "कुमार ! किसलिये तू मुझे मारना चाहता था ?" "देव ! राज्य चाहता हूँ।" "कुमार ! यदि राज्य चाहता है तो यह तेरा राज्य है ।" कह अजात-शत्रु कुमारको राज्य दे दिया। (२) वुद्धके मारनेके लिये अादमी भेजना तव तेवदत्त जहाँ अजात-शत्रु कुमार था, वहाँ गया । जाकर...कहा- "महाराज ! आदमियोंको हुकुम दो, कि श्रमण गौतमको जानसे मार दें।" तव अजात-शत्रु कुमारने मनुष्योंसे कहा- "भणे ! जैसा आर्य देवदत्त कहें वैसा करो।" तब देवदत्तने एक पुरुषको हुकुम दिया- "जाओ आबुम ! श्रमण गौतम अमुक स्थानपर विहार करता है । उसको जानसे मारकर, इस रास्तेमे आओ।" उस रास्ते में दो आदमियोंको बैठाया--"जो अकेला पुरुष इस ग़म्तेमे आवे, उसे जानने मारकर इस मार्गमे आओ।" उस गास्ते में चार आदमियोंको बैठाया-"जो दो पुरुष इस रास्ते आवें, उन्हें जानने मार कर, इस मार्गमे आओ।"