पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/५५२

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७१२।३ ] देवदत्तका बुद्धपर पत्थर मारना [ ४८५ उस मार्गमें आठ आदमी बैठाये-'जो चार पुरुष० ।" उस मार्गमें सोलह आदमी बैठाये- तव वह अकेला पुरुष ढाल तलवार ले तीर कमान चढ़ा, जहाँ भगवान् थे वहाँ गया । जाकर भगवान्के अविदूर में भयभीत, उद्विग्न० शून्य-शरीरसे खळा हुआ । भगवान्ने उस पुरुषको भीत० शून्य शरीर खळे हुये देखा । देखकर उस पुरुषको कहा- "आओ, आवुस ! मत डरो।" तब वह पुरुप ढाल-तलवार एक ओर (रख) तीर-कमान छोळकर, जहाँ भगवान् थे, वहाँ गया । जाकर भगवान्के चरणोंमें शिरसे पळकर भगवान्से बोला- "भन्ते ! वाल (=मूर्ख) सा मूढ़सा, अकुशल (=अ-चतुर) सा मैंने जो अपराध किया है; जो कि मैं दुष्ट-चित्त हो वध-चित्त हो, यहाँ आया; उसे क्षमा करें। भन्ते ! भगवान् भविष्यमें संवर (-रोक करने) के लिये, मेरे उस अपराध (=अत्यय)को अत्यय (=बीते)के तौरपर स्वीकार करें।" "आवस ! जो तूने अपराध किया, वध-चित्त हो यहाँ आया । चूंकि आवुस ! अत्यय (अपराध) को अत्ययके तौरपर देखकर धर्मानुसार प्रतीकार करता है। (इसलिये) उसे हम स्वीकार करते हैं ।...!" तव भगवान्ने उस पुरुषको आनुपूर्वी-कथा कही०१ । (और) उस पुरुपको उसी आसनपर० धर्म-चक्षु उत्पन्न हुआ तब वह पुरुष. . .भगवान्से वोला- "आश्चर्य ! भन्ते ! ! ० भन्ते ! आजसे भगवान् मुझे अञ्जलिवद्ध शरणागत उपासक धारण करें।" तव भगवान्ने उस पुरुपसे- "आवुस ! तुम उस मार्गसे मत जाओ; इस मार्गसे जाओ" (कह) दूसरे मार्गसे भेज दिया। तव उन दो पुरुषोंने-'वयों वह पुरुष देर कर रहा है' (सोच) ऊपरकी ओर जाते, भगवान्को एक वृक्षको नीचे बैठे देखा। देखकर जहाँ भगवान् थे, वहाँ. . .जाकर भगवान्को अभिवादनकर, एक ओर बैठ गये। उन्हें भगवान्ने आनुपूर्वी-कथा कही० । । । “आवुसो! मत तुम लोग उस मार्गसे जाओ; इस मार्ग जाओ"। तब उन चार पुरुषोंने ० । । तव उन आठ पुरुषोंने ० १ ० । तव उन सोलह पुरुषोंने • । ० "आजसे भन्ते ! भगवान् हमें अञ्जलि-बद्ध शरणागत उपासक धारण करें।" तब वह अकेला पुरुप जहाँ दे व दत्त था, वहाँ गया। जाकर देवदत्तसे वोला- "भन्ते ! मैं उन भगवान्को जानसे नहीं मार सकता। वह भगवान् महा-ऋद्धिक महानुभाव (३) देवदत्तका बुद्धपर पत्थर मारना "जाने दे आवुन ! तू श्रमण गौतमको जानसे मत मार, मैं ही...जानमे माहँगा।" उन समय भगवान् गृध्रकूट पर्वतकी छायामें टहलते थे। तब देवदत्तने गृध्रकूट पर्वतपर चढ़ नर-मने श्रमण गौतमको जानने मार'-(मोच) एक बळी मिला फेंकी। दो पर्वनकूटोंने आकर जनशिलाको रोक दिया। उनने (निकली) पपळीके उछलकर (लगनेने) भगवान्के पैरने रुधिर वह "ट ८४ ।