! ? .. विना०; ४९२ ] ४-चुल्लवग्ग [७१३ नीयती) से०; (८) पापमित्रतासे० । भिक्षुओ! इन आठ० । "अच्छा हो भिक्षुओ! भिक्षु प्राप्त लाभकी उपेक्षा कर करके बिहार करें; ० प्राप्त अन्लाभ०; ०प्राप्त यश०, ०प्राप्त अयग०, ० प्राप्त सत्कार०, ० प्राप्त असत्कार०; ० प्राप्त पापेच्छना०; ० प्राप्त पापमित्रता "भिक्षुओ! क्या बात देख भिक्षु प्राप्त लाभकी उपेक्षा करके विहार करें; ०; ० प्राप्त पाप- मित्रताकी उपेक्षा करके विहार करें ?-भिक्षुओ! प्राप्त लाभकी उपेक्षा किये बिना विहार करते समय जो पीळा-दाह करनेवाले आस्रव (=चित्त-मल) उत्पन्न होते हैं। प्राप्त लाभकी उपेक्षा करके विहार करनेपर वह पीळा-दाह करनेवाले आस्रव नहीं उत्पन्न होंगे। प्राप्त अलाभकी उपेक्षा किये बिना०; प्राप्त यशकी उपेक्षा किये विना०; प्राप्त अयगकी उपेक्षा किये विना० ; प्राप्त सत्कारकी उपेक्षा किये प्राप्त असत्कारकी उपेक्षा किये बिना०; प्राप्त पापेच्छनाकी उपेक्षा किये बिना०; प्राप्त पापमित्रताकी उपेक्षा किये बिना० । भिक्षुओ ! यह बात देख० । इसलिये भिक्षुओ ! तुम्हें नीखना चाहिये -० । प्राप्त लाभकी उपेक्षा कर करके विहरूँगा; ० ; प्राप्न पापमित्रताकी उपेक्षा कर करके विहरूँगा। "भिक्षुओ! तीन असद्धर्मोमे लिप्त पर्यादत्त चिन्न हो देवदत्त अपायिक नारकीय, कल्प भर (नरकमें रहनेवाला) चिकित्साके अयोग्य है । कौनसे तीन ? (१) पापेच्छता; (२) पाप- मित्रता; (३) थोळीसी विगेपता प्राप्त होनेसे अन्तराव्यवसान (=इतराना) करना । भिक्षुओ! इन तीन असहोसे लिप्त ०।- "लोकमें मत कोई पापेच्छ उत्पन्न हो, सो इससे जानो, जैसी कि पापेच्छोंकी गति होती है ।।(९)॥ 'पंडित है, ऐसा प्रसिद्ध है' 'भावितात्मा' होनेकी मान्यता है, मैंने सुना--जलकी भाँति देवदत्तमें यश (आदि) आठ हैं ॥(१०)॥ तथागतसे द्रोह करके उसने प्रमाद किया, चार द्वारवाले भयानक नरक अवीचिको प्राप्त हुआ ॥(११)। पाप कर्मको न करनेवाले द्वेषरहित ( पुरुष )का जो द्रोह करता है। आदरहीन द्वेष-युक्त उसी पापीको वह लगता है ॥(१२)॥ यदि (कोई) विपके घळेसे (सारे) समुद्रको दूपित करना चाहे, (तो), उससे वह दूषित नहीं हो सकता, क्योंकि समुद्र महान् है ॥(१३)। इसी प्रकार जो तथागतको वाद (विवाद) से पीडित करना चाहे, (तो उन) सम्यक्त्त्वको प्राप्त शान्त-चित्त (तथागत) को (वह) वाद नहीं लग सकता ॥(१४)॥ पंडित (जन) देसेको मित्र करे, और वैसेका सेवन करे। जिसके मार्गका अनुसरण करके भिक्षु दुःख-विनाशको प्राप्त कर सके" ॥(१५)। ३-संघमें फूट (व्याख्या) तव आयुग्मान् उपालि जहाँ भगवान् थे, वहाँ गये, जाकर भगवान्को अभिवादनार पर ओर बैठे। एक और बैट आवामान आलिने भगवान्मे यह कहा-
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