पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/५६४

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७४।२] कैसा संघमें फूट [ ४९५ "क्या भन्ते ! संघ भेदक (ऐसा भी) हो सकता है। (जो कि) नहीं कल्प भर अपाय नरकमें रहनेवाला, न अ-चिकित्स्य है?" "हो सकता है, उपालि ! (जो कि) नहीं कल्प भर ०।" "भन्ते ! कौनसा संघभेदक कल्प भर अपाय नरकमें रहनेवाला, अचिकित्स्य होता है ?" १-क. "उपालि ! जो भिक्षु (१) अ-धर्मको धर्म कहता है। उस अधर्म दृष्टि (=धारणा)की फूट (=भेद) में अधर्म-दृष्टिवाला हो, (वैसी) क्षान्ति रुचि भाव रखकर अनुश्रावण करता है, गलाका ग्रहण कराता है यह धर्म है, यह विनय है, यह शास्ताका उपदेश है, इसे ग्रहण करो, इसका व्याख्यान करो। उपालि ! यह (कहनेवाला) संघभेदक कल्प भर अपाय नरकमें रहनेवाला, अ-चिकित्स्य (=लाइलाज) है। (२) और फिर उपालि ! एक भिक्षु अधर्मको धर्म कहता है। उस अधर्म दृष्टिके भेदमें धर्म दृष्टिवाला हो, (वैसी) ० । (३) ० उस अधर्म दृष्टि-भेदमें संदेह युक्त हो, (वैसी) ० । ख. “(४) और फिर उपालि ! जो भिक्षु अधर्मको धर्म कहता उस अधर्म दृष्टिमें धर्म- दृष्टि-भेदको धारणकर दृष्टिको धारणकर, क्षान्ति=रुचि भावको रखकर अनुश्रावण करता है, शलाका ग्रहण करता है -यह धर्म है ० । (५) धर्म-दृष्टि-भेदमें धर्म-दृष्टि रखकर ०। (६) ० उस धर्म दृष्टि-भेदमें सन्देह युक्त होकर ० । ग. “(७) ० उस संदेहवाले भेद में अधर्म दृष्टिवाला होकर ० । (८) ० उस संदेहवाले भेद में धर्म दृष्टिवाला होकर० । (९) ० उस संदेहवाले भेदमें संदेह-युक्त हो ।' २--क. "उपालि ! जो भिक्षु (१) धर्मको अधर्म कहता है, उस अधर्म-दृष्टिके भेद में अधर्म दृष्टिबाला हो (वैसी) आन्ति रुचि भाव रखकर अनुश्रावण करता है, शलाका ग्रहण कराता है -०१॥ (९) ० उम अधर्म-दृष्टिके भेदमें संदेह-युक्त हो ० । ३--क. (१) अविनयको विनय कहता है, उस अविनय-दृष्टिके भेदमें अविनय दृप्टिवाला हो (वैसी) ०१॥ ४--क. (१) विनयको अविनय कहता है ० २ । ५--वा. "० (१) तथागतके अ-भाषित अ-लपितको तथागतका भापित लपित कहता है, ६--क. "० (१) ० भापित-लपितको ० अभाषित अलपित कहता है, ०३ ७--वा. "० (१) ० अन्-आचीर्णको ० आचीर्ण कहता है, ०३ । ८--या. "० (१) ० आचीर्णको ० अन्-आचीर्ण कहता है, ०३ --क. "० (१) ० अ-प्रनप्तको ० प्रशप्त कहता है, १०--क.. "० (१) ० प्रज्ञप्तको ० अ-प्रजप्त कहता है, ०३ । ११--क. "० (१) अन्-आपत्तिको आपत्ति कहता है, ०३ । १-क. "० (१) आपत्तिको अन्-आपत्ति कहता है, १६---.. "० (१) लघुक-आपत्तिको गुरुक-आपत्ति कहता है, ०३ १४--व.. "- (१) गुत्क-आपत्तिको लघुक-आपनि कहता है, ०३ १५.--.. "- () न-अवरोप आपनियोंको निर्-अवगेप आपत्तियाँ कहता है, ०३ । १६---.. "- (१) निम्-अवरोप आपनियोंको न-अवशेष आपत्तियाँ कहता है, १४---.. " () दृट्टल आपत्तियोंको, अ-दृढुल्ल आपत्तियाँ कहता है, ०। " O " ० 1 । देखो .पर अटारह। ऊपरकी नद कोटियोंको दुहराओ । 'पट १९६-९४ के.-६७ तरको भी ऐतेही दुहराना चाहिये।