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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/५६६

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८-नत-स्कन्धक १--नवागन्तुक, आवासिक और गमिकके कर्तव्य । २--भोजन-संबंधी नियम । ३--भिक्षा- चारी और आरण्यकके कर्तव्य । ४--आसन, स्नानगृह और पाखानेके नियम। ५--शिष्य-उपाध्याय, अन्तेवासी-आचार्यके कर्तव्य । ६१-नवागन्तुक, आवासिक और गमिकके कर्तव्य १-श्रावस्ती उस समय बुद्ध भगवान् श्रा व स्ती में अनाथ पि डि क के आराम जे त व न में विहार करते थे। (१) नवागन्तुकके व्रत उस समय नवागन्तुक भिक्षु जूता पहिने भी आराममें घुसते थे, छत्ता लगाये भी०, शरीर के (=अवगुंटिन) भी०, गिरपर चीवर रक्खे भी० । पीनेके (पानी)से भी पैर धोते थे, (अपनेसे) वृद्ध भिक्षुको भी अभिवादन न करते थे, न (उनने) गय्या-आसनके लिये पूछते थे। एक नवागन्तुक भिक्षु सूने बिहार (=वोठरी) में घटिका (सांकल) उघाळ, किवाळ खोल एक दम भीतर घुस गया। उसके उपर बैठा साँप (उसवे) कंधेपर गिरा। वह डरके मारे चिल्ला उठा। भिक्षुओंने दौळकर उससे पूछा-- "आवुस ! क्यों तू चिल्लाया ?" तब उस भिक्षुने उन भिक्षुओंसे वह बात कह दी। जो अल्पेन्छ ० भिक्षु थे, वह हैरान ० होते थे—'वसे नवागंतुक भिक्षु' जूता पहिने आराममें घुस जाते है ! ० शय्या-आसनके लिये नहीं पूछते !!' उन्होंने यह बात भगवान्ने कही।-- "सचमुच भिक्षुओ! ?" "(हाँ) सचमुच भगवान् !" • फटकारकर, भगवान्ने भिक्षुओंको संबोधित किया- "तो भिक्षुजो ! नवागन्तुवोंके दन (=कर्तव्य) का विधान करता हूँ, जैसे कि नवागन्तुक भिक्षुओको बतना चाहिये- "निको! नवागन्नुमः निभुको आगनमें प्रवेश करते वक्त जतेको निकाल, नीचे करके पारपाटावर (हाप) ले : हनेको मार गिरको जोल, गिरके चीबरको कंधेपर कर ठीक नरहने बिना जल्दी दिन अत्तम प्रवेश करना चाहिले। "सलाम पूरा करने मत देना चाहिये कि यहाँ आवामित्र भिक्षु प्रतित्रमाण (आना-