पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/५७५

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५०६ ] ४-चुल्लवग्ग [5413 हार बंद कर जाना चाहिये। "भिक्षुओ! यह भिक्षुओंका जन्ताघर-वत है, जैसे कि०।" 7 (३) वच्चकुटी का व्रत उस समय ब्राह्मण जातिका एक ब्राह्मण गौच हो पानी नहीं लेना चाहता था (यह न्याल कर कि) कौन इस वृपल (=नीच) दुर्गधको छ्येगा। उसके गोत्र-मार्गमें कीळे रहते थे। तब उस भिक्षुने भिक्षुओंसे यह बात कही। "क्या तू आवुस ! शौच हो पानी नहीं लेता?" 'हाँ, आवुसो !" अल्पेच्छ० भिक्षु०।०।-- "भिक्षुओ! शौच हो, पानी रहते, बिना पानी छुये नहीं रहना चाहिये, जो पानी न छुये उने दुक्कटका दोष हो।" उस समय भिक्षु पाखानेमें बुद्धताके अनुमार शौच करते थे। नये (हुये) भिक्षु पहिले ही आकर शौचके लिये इन्तिजार करते थे। रोकनेमें मुछित हो गिर पळते थे। भगवान्ले यह बात कही।- "सचमुच, भिक्षुओ! o?" "(हाँ) सचमुच भगवान् !" ०फटकारकर भगवान्ने धार्मिक कथा कह भिक्षुओंको संबोधित किया- "भिक्षुओ! पाखानेमें बुद्धपनके अनुसार शौच नहीं करना चाहिये, जो करे उने दुकटका दोप हो। अनुमति देता हूँ भिक्षुओ! आनेके क्रमसे शौच होनेकी।" उस समय पड्वर्गीय भिक्ष बहुत शीघूतामे पाखानेमें जाते थे, पाखाना होते (उन्भिज्जित्त्वा) भी०। गिरते पळते भी शौच होते थे। दातवन करने भी० । पाखाने के द्रोण (=गमला) के बाहर भी०। पेसाबके द्रोणक (=नाली) के बाहर भी पेशाब करते थे । पेसाबकी दोनीमें भी थूकते थे। कठोर काठसे अपलेखन (=पोंछना) करते थे। अपलेखके काष्ठको संडासमें डाल देते थे। बळी शीघ्रतासे (दौळते हुये) पाखानेसे निकलते थे । शौच होते ही निकलते थे । चपचप करते पानी छूते थे। पानी छुनेके शराव (=कुल्हिया) में भी पानी छोळ देते थे। अल्पेच्छ ० भिक्षु००।- "तो भिक्षुओ! भिक्षुओंको वच्चकुटी (=पाखाने ) का व्रत प्रज्ञापित करता हूँ, जैसे कि भिक्षुओं को बच्चकुटीमें वर्तना चाहिये। "जो बच्चकुटी जाये, वाहर खले हो उसे खाँसना चाहिये । भीतर बैठेको भी खाँसना चाहिये। चीवर (टाँगने) के वाँस या रस्सीपर चीवरको रख, अच्छी तरह-विना त्वराके पाखाने में जाना चाहिये । न बहुत जल्दीसे प्रवेश करना चाहिये, न शौच होते प्रवेश करना चाहिये । पाखानेके पायदान- पर बैठकर शौच करना चाहिये। हिलते हुये नहीं शौच करना चाहिये । दातवन करते नहीं। पाखानेकी नालीके बाहर नहीं०। पेशाबकी नालीके बाहर नहीं पेसाब करना चाहिये । पेसाबकी नालीमें थूक नहीं फेंकना चाहिये। कठोर काष्ठसे अपलेखन नहीं करना चाहिये। अपलेखनको संडासमें नहीं डालना चाहिये । पाखानेके पायदानपर खळे हो (अपने शरीरको) ढाँक लेना चाहिये। बहुत जल्दी में नहीं निकलना चाहिये। न कूद कर निकलना चाहिये। पानी छुनेके पायदानपर स्थित हो अविज्जन (जल-सिंचन) करना चाहिये। चप-चप करते पानी नहीं छूना चाहिये। १पाखाना।