पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/५८८

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१०-भिक्षुणी-स्कंधक १--भिक्षुणियोंको प्रव्रज्या, उपसम्पदा और भिक्षुओंके साथ अभिवादन । २--प्रातिमोक्षकी आवृत्ति, आपत्ति-प्रतिकार, संघ-कर्म, अधिकरण-शमन, और विनय-वाचन । ३--अभद्र परिहास । ४--उपदेश-श्रवण, शरीरका संवारना, मृत भिक्षुणीका दायभाग, भिक्षुको पात्र दिखाना, भिक्षुसे भोजन ग्रहण करना। ५--आसन, वसन, उपसम्पदा, भोजन, प्रवारणा, उपोसथ स्थगित करना, सवारी और दूत द्वारा उपसम्पदा । ६--अरण्य-वास-निषेध, भिक्षुणी-निवास निर्माण, गर्भिणी प्रव्र- जिताकी सन्तानका पालन, दंडितको साथिन देना, दुबारा उपसम्पदा, शौच-स्नान । ३१-भिक्षुणियोंकी प्रव्रज्या-उपसम्पदा, और भिक्षुओंके साथ अभिवादन और भिक्षुणियोंके शिक्षापद १-कपिलवस्तु उस समय बुद्ध भगवान् शा क्यों (के देश) में क पि ल व स्तु के न्य ग्रोधा रा म में विहार करते थे। तव महाप्रजापती गौतमी जहाँ भगवान् थे, वहाँ आई। आकर भगवान्को वन्दनाकर, एक और खळी हो गई। एक ओर खळी महाप्रजापती गौतमीने भगवान्से कहा-"भन्ते ! अच्छा हो (यदि) मातृग्राम (=स्त्रियाँ) भी तथागतके दिखाये धर्म-विनय (=धर्म) में घरसे वेघर हो प्रव्रज्या पावें।" "नहीं गौतमी ! मत तुझे (यह) रुच-स्त्रियाँ तथागतके दिखाये धर्ममें ।" दूसरी वार भी। तीसरी बार भी । तव म हा प्रजा प ती गौ त मी-भगवान् , तथागत-प्रवेदित धर्म-विनय (=बुद्धके दिखलाये धर्म) में स्त्रियोंको घर छोळ बेघर हो प्रवज्या (लेने) की अनुज्ञा नहीं करते-जान, दुःखी दुर्मना अश्रु- मुखी (हो) रोती, भगवान्को अभिवादनकर प्रदक्षिणाकर चली गई। २–वैशाली (१) स्त्रियोंका भिक्षुणी होना भगवान् क पि ल-ब स्तु में इच्छानुसार विहारकर (जिधर) वै या ली थी, (उधर) चारिकाको चल दिये। क्रमगः चारिका करते हुए, जहाँ वैगाली थी, वहाँ पहुँचे। भगवान् वैशालीमें महावनकी कूटागारशालामें विहार करते थे। नव महाप्रजापती गौतमी, केशोंको कटाकर कापायवस्त्र पनि, वहुतमी 'माक्य-स्त्रियों के साथ, जिधर वैशाली थी (उधर) चली। क्रमशः चलकर वैशालीमें जहाँ महा- वनकी कूटागारगाला थी (वहाँ) पहुंची। महाप्रजापती गौतमी फूले-पैरों धूल-भरे शरीरसे, दुःखी दुर्मना अधु-मुखी, रोती, द्वार-कोष्ठक (=बड़ा द्वार, जिसपर कोठा होता था) के बाहर जा खळी हुई। आयुप्मान् आनन्दने महाप्रजापतीको विळा देविकर. . .पूछा- १०६१।१] [ ५१०