पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/५८९

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५२० ] ४-चुल्लवग्ग [ १०६१।२ "गौतमी! तू क्यों फूले पैरों ?" "भन्ते ! आनन्द ! तथागत-प्रवेदित धर्म-विनयमें स्त्रियोंकी घर छोळ बेघर प्रव्रज्याकी भग- वान् अनुज्ञा नहीं देते।" "गौतमी ! तू यहीं रह; बुद्ध-धर्ममें स्त्रियोंकी० प्रव्रज्याकं लिये मैं भगवान से प्रार्थना करता हूँ।" तब आयुष्मान् आनन्द जहाँ भगवान् थे, वहाँ गये । जाकर भगवान्को अभिवादनकर एक ओर० बैठ, भगवान्से बोले- "भन्ते ! महाप्रजापती गौतमी फूले-पैरों धूल-भरे गरीग्ने दुःखी दुर्मना अश्रु-मुवी रोती हुई द्वार-कोष्ठकके बाहर खळी है (कि),--भगवान्. . . (बुद्ध-धर्ममें).. स्त्रियोंकील प्रव्रज्याकी अनुज्ञा नहीं देते । भन्ते ! अच्छा हो स्त्रियोंको... . (बुद्ध-धर्ममें). ....०प्रव्रज्या मिले। "नहीं आनन्द ! मत तुझे रुचे-तथागतके जतलाये धर्म स्त्रियोंकी बरसे बेघर हो प्रत्रज्या। दूसरी वार भी आयुप्मान् आनन्द० । तीसरी बार भी० । तव आयुष्मान् आनन्दको हुआ,--भगवान् तथागत-प्रवेदित धर्म-विनयमें स्त्रियोंकी घरसे वेघर प्रव्रज्याकी अनुज्ञा नहीं देते, क्यों न मैं दूसरे प्रकारसे प्रव्रज्याकी अनुजा माँगू। तब आयुप्मान् आनन्दने भगवान्से कहा- "भन्ते ! क्या तथागत-प्रवेदित धर्ममें घरसे वेघर प्रबजित हो, स्त्रियाँ स्रोत-आपत्तिफल, सकृदागामि-फल, अनागामि-फल, अर्हत्त्व-फलको साक्षात् कर सकती हैं ?" “साक्षात् कर सकती हैं, आनन्द ! तथागत-प्रवेदित।" “यदि भन्ते ! तथागत-प्रवेदित धर्म-विनयमें प्रबजित हो, स्त्रियाँ ०अर्हत्त्व-फलको साक्षात् करने योग्य हैं। जो, भन्ते ! अभिभाविका, पोपिका, क्षीर-दायिका हो, भगवान्की मौसी महाप्रजापती गौतमी वहुत उपकार करनेवाली है। जननीके मरनेपर (उसने) भगवान्को दूध पिलाया। भन्ते ! अच्छा हो स्त्रियोंको० प्रव्रज्या मिले।" (२) भिक्षुणियोंके आठ गुरु धर्म "आनन्द ! यदि महाप्रजापती गौतमी आठ गुरु-धर्मों (=बळी शर्तो)को स्वीकार करे, तो उसकी उपसम्पदा हो।- (१) सौ वर्षकी उप-सम्पन्न (=उपसम्पदा पाई) भिक्षुणीको भी उसी दिनके उप-सम्पन्न भिक्षुके लिये अभिवादन प्रत्युत्थान, अंजलि जोळना, सांमीची-कर्म करना चाहिये। यह भी धर्म सत्कार- पूर्वक गौरव-पूर्वक मानकर, पूजकर जीवनभर न अतिक्रमण करना चाहिये। (२) (भिक्षुका) उपगमन (=धर्मश्रवणार्थ आगमन) करना चाहिये। यह भी धर्म । (३) प्रति आधेमास भिक्षुणीको भिक्षु-संघसे पर्येपण (प्रार्थना) करना चाहिये। यह । (४) वर्पा-वास कर चुकनेपर भिक्षुणीको (भिक्षु, भिक्षुणी) दोनों संघोंमें देखें, मुने, जाने तीनों स्थानोंसे प्रवारणा करनी चाहिये। (५) गुरु-धर्म स्वीकार किये भिक्षुणीको दोनों संघोंमें पक्ष-मानता करनी चा० । (६) किसी प्रकार भी भिक्षुणी भिक्षुको गाली आदि (=आक्रोश) दे। यह भी। (७) आनन्द ! आजसे भिक्षुणियोंका भिक्षुओंको (कुछ) कहनेका रास्ता बन्द हुआ। (८) लेकिन भिक्षुओंका भिक्षुणियोंको कहनेका रास्ता खुला है। यह । "यदि आनन्द ! महाप्रजापती गौतमी इन आठ गुरु-धर्मोको स्वीकार करे, तो उसकी उप- सम्पदा हो।"