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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/५९०

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की माला, १०६१।३ ] भिक्षुणियोंकी उपसम्पदा [ ५२१ तब आयुष्मान् आनन्द भगवान्के पास, इन आठ गुरु-धर्मोको समझ (उद्ग्रहण- पढ़) कर जहाँ महाप्रजापती गौतमी थी, वहाँ गये। जाकर महाप्रजापती गौतमीसे बोले- "यदि गौतमी! तू इन आठ गुरु-धर्मोको स्वीकार करे, तो तेरी उपसम्पदा होगी-(१) सौ वर्पकी उपसम्पन्न० (८) ।" "भन्ते ! आनन्द ! जैसे शौकीन शिरसे नहाये अल्प-वयस्क, तरुण स्त्री या पुरुप उत्पल वार्षिक (=जूही) को माला, या अतिमुक्तक (=मोतिया) की मालाको पा, दोनों हाथोंमें ले, (उसे) उत्तम-अंग शिरपर रखता है। ऐसे ही भन्ते ! मैं इन आठ गुरु-धर्मोको स्वीकार करती हूँ।" तब आयुष्मान् आनन्द जहाँ भगवान् थे, वहाँ गये। जाकर अभिवादनकर० एक ओर बैठकर, भगवान्से बोले- "भन्ते! प्रजापती गौतमीने यावज्जीवन अनुल्लंघनीय आठ गुरु-धर्मोको स्वीकार किया।" "आनन्द ! यदि तथागत-प्रवेदित धर्म-विनयमें स्त्रियाँ प्रव्रज्या न पातीं, तो (यह) ब्रह्मचर्य चिर-स्थायी होता, सद्धर्म सहस्र वर्ष तक ठहरता । लेकिन चूंकि आनन्द ! स्त्रियाँ० प्रवजित हुई; अब ब्रह्मचर्य चिर-स्थायी न होगा, सद्धर्म पाँच ही सौ वर्ष ठहरेगा । आनन्द ! जैसे बहुत स्त्रीवाले और थोळे पुरुषोंवाले कुल, चोरों द्वारा, भँडियाहों (=कुम्भ-चोरों) द्वारा आसानीसे ध्वंसनीय (=सु-प्र-ध्वंस्य) होते हैं, इसी प्रकार आनन्द ! जिस धर्म-विनयमें स्त्रियाँ प्रव्रज्या पाती हैं, वह ब्रह्मचर्य चिर-स्थायी नहीं होता। जैसे आनन्द ! सम्पन्न (=तैयार,) लहलहाते धानके खेतमें सेतट्टिका (=सफेदा)नामक रोग-जाति पळती है, जिससे वह शालि-क्षेत्र चिर-स्थायी नहीं होता; ऐसे ही आनन्द ! जिस धर्म-विनय में । जैने आनन्द ! सम्पन्न ( तैयार) ऊखके खेतमें मांजेष्ठिका (=लाल रोग) नामक रोग-जाति पळती है, जिससे वह ऊखका खेत चिर-स्थायी नहीं होता; ऐसे ही आनन्द० । आनन्द ! जैसे आदमी पानीको रोकनेके लिये, वळे तालावकी रोक-थामके लिये, मेंड (=आली) वाँधे, उसी प्रकार आनन्द ! मैंने रोक-थामके लिये भिक्षुणियोंके जीवनभर अनुल्लंघनीय आट गुरु-धर्मोको स्थापित किया।" भिक्षुणियोंके आठ गुरु धर्म समाप्त तव म हा प्रजा प ती गौतमी जहाँ भगवान् थे, वहाँ गई। जाकर भगवान्को अभिवादन कर एक ओर खळी हुई। एक ओर खळी महाप्रजापती गौतमीने भगवान्से यह कहा-- "भन्ते ! इन शा क्य नियों के साथ मुझे कैसे करना चाहिये ?" तव भगवान्ने धार्मिक कथा द्वारा महाप्रजापती गौतमीको संदर्शित-समुत्तेजित, संप्रहर्पित किया । तब भगवान्की धार्मिक कथा द्वारा समुत्तेजित संप्रहर्पित हो महाप्रजापती गौतमी भगवान्को अभिवादनकर प्रदक्षिणाकर चली गई। तव भगवान्ने इसी संबंधमें इसी प्रकरणमें धार्मिक कथा कह भिक्षुओंको संबोधित किया- (३) भिक्षुणियोंकी उपसम्पदा "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ, भिक्षुओं द्वारा भिक्षुणियोंकी उपसम्पदाकी।" 2 तव भिक्षणियोंने महाप्रजापती गौतमीसे यह कहा- "आर्याको उपसम्पदा नहीं है, हम सवको उपसम्पदा मिली है। भगवान्ने इस प्रकार भिक्षुओं द्वारा भिक्षुणियोंकी उपसम्पदाका विधान किया है।" तब महाप्रजापती गौतमी जहाँ आयुप्मान् आ नन्द थे, वहाँ गई। जाकर आयुष्मान् आनन्दको अभिवादनकर एक ओर खळी हुई । एक ओर खळी महाप्रजापती गौतमीने आयुप्मान् आनन्दसे यह कहा- "भन्ने आनन्द ! यह भिक्षुणियाँ मुझसे यह कहती हैं-आर्याको उपसम्पदा नहीं है, हम सवको !