पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/५९३

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11 ५२४ ] ४-चुल्लवग्ग [ १०।४ "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ, भिक्षुओंसे भिक्षुणियोंको सीखनेकी-इस प्रकार आपत्तिका प्रतिकार करना चाहिये।" 9 ३--तव भिक्षुओंको यह हुआ---किसे भिक्षुणियोंके प्रतिकार (=Confession)को स्वीकार करना चाहिये ? भगवान्से यह बात कही।-- "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ, भिक्षुओंको भिक्षुणियोंके प्रतिकारको स्वीकार करनेकी।" 10 ४--उस समय भिक्षुणियाँ सळकपर भी, व्यूह (=भिड़) में भी, चौरस्नेपर भी भिक्षुको देव पात्रको भूमिपर रख उत्तरासंगको एक कंधेपरकर उकळू बैट, हाथ जोळ आपत्निका प्रति-का र करती थीं। लोग हैरान होते थे---यह इनकी जाया हैं, यह उनकी जाग्यिां (रवेलियाँ) हैं, रातको नाराज़ करके अव क्षमा करा रही हैं। -- "भिक्षुओ! भिक्षुओंको भिक्षुणियोंके आपत्ति-प्रतिकारको नहीं स्वीकार करना चाहिये, ० ०दुक्कट ० । ०अनुमति देता हूँ, भिक्षुणियोंको भिक्षुणियोंके आपति-प्रतिकारको ग्रहण करनेकी।" II ५--भिक्षुणियाँ न जानती थीं, कैसे आपत्निको स्वीकार करना चाहिये। - "०अनुमति देता हूँ भिक्षुओंसे, भिक्षुणियोंको सीखनेकी-इस प्रकार आपत्तिके (प्रतिकार) को स्वीकार करना चाहिये।" 12 (३) संघ-कर्म १--उस समय भिक्षुणियोंमें क र्म (-चुनाव आदि) न होता था । - '०अनुमति देता हूँ भिक्षुणियोंको, क र्म करनेकी।" 13 २--तव भिक्षुओंको यह हुआ—किसे भिक्षुणियोंका कर्म करना चाहिये । ०- "०अनुमति देता हूँ, भिक्षुओंको भिक्षुणियोंका कर्म करनेकी।" 14 ३–उस समय जिनका कर्म (=दंड) हो गया होता था, वह भिक्षुणियाँ सळकपर भी, व्यूहमें भी, चौरस्तेपर भी भिक्षुको देख पात्रको भूमिपर रख उत्तरासंगको एक कंधेपर कर, उकळू बैठ, हाथ जोळ-ऐसा करना चाहिये--(सोच) क्षमा कराती थीं। लोग हैरान० होते थे—'यह इनकी जाया हैं, यह इनकी जारियाँ हैं, रातको नाराज़कर अव क्षमा करा रही हैं। "भिक्षुओ! भिक्षुओंको भिक्षुणियोंका कर्म नहीं कराना चाहिये, दुक्कट ०।" IS ४--भिक्षुणियाँ न जानती थीं, ० । 0- '०अनुमति देता हूँ भिक्षुओंसे, भिक्षुणियोंको सीखनेकी-इस प्रकार कर्म करना चाहिये।" 16 (४) अधिकरण-शमन १--उस समय भिक्षुणियाँ संघके बीच भंडन कलह, विवाद करती एक दूसरेको मुख (रूपी) शक्ति (=शस्त्र) से पीळित कर रही थीं। उस अधिकरण ( झगळे) को शान्त न कर सकती थीं। भगवान् से यह बात कही ।- "०अनुमति देता हूँ भिक्षुओंको, भिक्षुणियोंके अधिकरणका फ़ैसला (=शान्त) करनेकी।" 17 २--उस समय भिक्षु भिक्षुणियोंके अधिकरणका फैसला करते थे। उस अधिकरणके विनिश्चय (= देखने) के समय क र्म को प्राप्त भी दोपी भी भिक्षुणियाँ देखी जाती थीं। भिक्षुणियोंने यह कहा- "अच्छा होता, भन्ते ! आर्यायें ही भिक्षुणियोंके कर्म को करतीं, आर्यायें ही भिक्षुणियोंकी आपत्तिको स्वीकार करतीं; (किन्तु) भगवान्ने अनुमति दी है भिक्षुओंको भिक्षुणियोंके अधिकरणको शान्त करनेकी।" भगवान्ने यह बात कही।- 04