पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/५९४

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१०९३३३ ] अभद्र परिहास [ ५२५ "० अनुमति देता हूँ भिक्षुओंको भिक्षुणियोंपर क र्म का आरोपकर भिक्षुणियोंको देने की; भिक्षुणियोंको भिक्षुणियोंके कर्मके करनेकी; भिक्षुओंको भिक्षुणियोंपर आपत्तिका आरोपकर भिक्षुणियों को देनेकी, भिक्षुणियोंको भिक्षुणियोंकी आपत्तिको स्वीकार करनेकी।" 18 (५) विनय-वाचन उस समय उत्प ल व र्णा भिक्षुणीकी अन्तेवासिनी (=शिप्या) वि न य सीखनेके लिये सात वर्पसे भगवान्का अनुबंध (=अनुगमन) कर रही थी। स्मृति न रहनेसे सीख सीखकर वह भूल जाती थी। उस भिक्षुणीने सुना कि भगवान् श्रावस्ती जाना चाहते हैं। तब उस भिक्षुणीसे यह हुआ-'मैं सात वर्षसे विनय सीखत्ती भगवान्का अनुबंध कर रही हूँ, स्मृति न रहनेसे सीख सीखकर उसे भूल जाती हूँ। स्त्रीके लिये जीवनभर शास्ताका अनुबंध करना कठिन है। मुझे क्या करना चाहिये।' भगवान्से यह वात कही "०अनुमति देता हूँ भिक्षुओंको भिक्षुणियोंके लिये वि न य वाँचनेकी।" 19 प्रथम भाणवार (समाप्त) ॥१॥ ३-अभद्र परिहास ३--श्रावस्ती (१) भिक्षुओंका भिक्षुणियोंपर कीचळ पानी डालना निषिद्ध १-तब भगवान् वै शा ली में इच्छानुसार विहारकर जिधर श्रा व स्ती है उधर चारिकाके लिये चल पळे । क्रमशः चारिका करते जहाँ श्रावस्ती है वहाँ पहुँचे। वहाँ भगवान् श्रावस्तीमें अ ना थ - पिं डि क के आराम जे त व न में विहार करते थे। उस समय षड् व र्गी य भिक्षु भिक्षुणियोंपर पानी- कीचळ डालते थे, जिसमें कि वह उनकी ओर आसक्त हों। भगवान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ! भिक्षुओंको भिक्षुणियोंपर कीचळ-पानी नहीं डालना चाहिये, ०दुक्कट ० । ०अनु- मति देता हूँ, उस भिक्षुके दंडकर्म करनेकी।" 20 २--तब भिक्षुओंको यह हुआ—क्या दंड-कर्म करना चाहिये ? भगवान्से यह वात कही।- "भिक्षुओ! उस भिक्षुको भिक्षुणी-संघ द्वारा न-वंदनीय कराना चाहिये।" 21 (२) भिक्षुओंका भिक्षुणियोंको नग्न शरीर दिखलाना निषिद्ध उस समय पड् व र्गी य भिक्षु शरीर खोलकर भिक्षुणियोंको दिखलाते थे, उरु०, पुरुप-इन्द्रिय०, भिक्षुणियोंसे दिल्लगी करते थे, भिक्षुणियोंके पास (पुरुपोंको बुरी इच्छासे) भेजते थे—जिसमें कि वह उनपर आसक्त हो। ०- "भिक्षुओ! भिक्षुको शरीर०, उरु०, पुरुप-इन्द्रियको खोलकर भिक्षुणियोंको नहीं दिखलाना चाहिये, भिक्षुणियोंसे दिल्लगी नहीं करनी चाहिये, भिक्षुणियोंके पास (पुरुषोंको बुरी इच्छासे) भेजना नहीं चाहिये, दुक्कट ० । ०अनुमति देता हूँ उस भिक्षुका दंड-कर्म करनेकी ।...। उस भिक्षुको भिक्षुणी- संघ द्वारा न-वंदनीय कराना चाहिये।” 22 (३) भिक्षणियोंका भिक्षुओंपर कीचळ-पानी डालना निपिद्ध १-उस समय पड्वर्गी या भिक्षुणियाँ भिक्षुओंपर पानी-कीचळ डालती थीं०।- "भिक्षुओ ! भिक्षुणियोंको भिक्षुओंपर कीचळ-पानी नहीं डालना चाहिये,०दुक्कट ० । ०अनु- मति देता हूँ, उस भिक्षुणीका दंड-अकर्म करनेको।" 23