पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/५९५

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५२६ ] ४-चुल्लवग्ग [ १०६४१२ २-तब भिक्षुओंको यह हुआ--क्या दंड-कर्म करना चाहिये ? भगवान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ आवरण (रकर देना) करनेकी।" 24 ३--आवरण करनेपर भी उसे ग्रहण न करती थीं। - "०अनुमति देता हूँ (उस भिक्षुणीको) उपदेगने वंचित करनेकी।” 25 (४) भिक्षुणियोंका भिक्षुओंको नग्न शरीर दिग्बलाना निषिद्ध १--उस समय पड्वर्गीया भिक्षुणियाँ गरीर,स्तन०, उम०, स्त्री-इन्द्रिय खोलकर भिक्षुओंको दिखलाती थीं, भिक्षुओंसे दिल्लगी करती थीं, भिक्षुओंके पास (म्बीको) भेजती थी जिसमें कि वह उनपर आसक्त हों। - "भिक्षुओ! भिक्षुणीको शरीर०, स्तन०, उम०, स्त्री-इन्द्रिय बोलकर भिक्षुको नहीं दिखलाना चाहिये, भिक्षुओंसे दिल्लगी नहीं करनी चाहिये, भिक्षुओंके पास (स्त्रीको) नहीं भेजना चाहिये, ० दुक्कट ० । ०अनुमति देता हूँ, उस भिक्षुणीका दंड-कर्म करनेकी।" 0 1 26 "०अनुमति देता हूँ, आवरण करनेकी ।” 0 1 27 "०अनुमति देता हूँ, उपदेशसे वंचित करनेकी।" 28 तब भिक्षुओंको यह हुआ—क्या उपदेशसे वंचित की गई भिक्षुणियोंके साथ उपोनय करना विहित है या नहीं ? "भिक्षुओ ! उपदेशसे वंचित की गई (=उपदेश स्थगित) भिक्षुणीके साथ उपोसथ नहीं करना चाहिये, जब तक कि उस अधिकरणका फैसला न हो जाये ।" 29 11 0 ४-उपदेश-श्रवण, शरीर सँवारना, मृत भिक्षुणीका दायभाग, भिक्षुको पात्र दिखलाना, भिक्षुसे भोजन ग्रहण करना (१) उपदेश स्थगित करना १-उस समय आयुष्मान् उ दा यी उपदेश स्थगितकर चारिकाके लिये चले गये । भिक्षुणियाँ हैरान० होती थीं—'कैसे आर्य उदायी उपदेश स्थगितकर चारिकाके लिये चले गये !!' भगवान्से यह वात कही ।-- "भिक्षुओ! उपदेश स्थगितकर चारिकाके लिये नहीं जाना चाहिये, ०दुक्कट० । 30 २-उस समय मूढ अजान उपदेश स्थगित करते थे । ०- "भिक्षुओ! मूट अजानको उपदेश स्थगित नहीं करना चाहिये, ०दुक्कट० ।" 31 ३--उस समय भिक्षु बिना (कोई) वातके, अकारण उपदेश स्थगित करते थे । ०- "भिक्षुओ ! बिना (कोई) वातके अकारण उपदेश स्थगित नहीं करना चाहिये, ०दुक्कट०।"32 ४-उस समय भिक्षु उपदेश स्थगितकर विनिश्चय (फैसला) न देते थे। ०- "भिक्षुओ! उपदेश स्थगितकर न-विनिश्चय देना नहीं चाहिये, °दुक्कट० 1 35 (२) उपदेश सुनने जाना १-उस समय भिक्षुणियाँ उपदेश (=अववाद) में न जाती थीं। -- "भिक्षुओ! भिक्षुणियोंको उपदेशमें न-जाना नहीं चाहिये, जो न जाये उसे धर्मानुसार (दंड) करना चाहिये।" 34 २--उस समय सारा भिक्षुणी-संघ उपदेश (सुनने के लिये जाता था। लोग हैरान होते थे- ! -