पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/६००

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। १०६५।२ ] ऋतुमती भिक्षुणीके नियम [ ५३१ (१५) भिक्षुओंका भिक्षुणियोंको परस्पर भोजन देने में नियम १--उस समय लोग भिक्षुओंको भोजन (=आमिप) देते थे। भिक्षु (उसे), भिक्षुणियोंको दे देते थे। लोग हैरान ० होते थे--'कैसे भदन्त (लोग) अपने खानेके लिये दिये गये (भोजन) को दूसरे को देंगे!! क्या हम दान देना नहीं जानते ?' ०-- "भिक्षुओ! अपने खानेके लिये दिये गये (भोजन) को दूसरेको नहीं देना चाहिये। दुक्कट ०।" 56 २-उस समय भिक्षुओंके पास अधिक भोजन (=आमिप) जमा हो गया था। भगवान्से यह बात कही।- • अनुमति देता हूँ, संघको देनेकी।" 57 ३--बहुत ही अधिक जमा हो गया था ।०-- "० अनुमति देता हूँ, व्यक्तिके लिये भी देनेकी।" 58 ४--उस समय भिक्षुओंको जमा किया भोजन मिला था ।०-- " अनुमति देता हूँ भिक्षुणियोंके जमा किये (पदार्थ) को भिक्षुओंको दिलवाकर खाने की।" 59 ५-उस समय लोग भिक्षुणियोंको भोजन देते थे ०।-- "भिक्षुणियोंको अपने खानेके लिये दिये गये (भोजन) को दूसरेको नहीं देना चाहिये, दुक्कट ०"० 60 ६--"० अनुमति देता हूँ संघको देनेकी ।"० 61 ७-"० अनुमति देता हूँ व्यक्तिके लिये भी देनेकी।"० 62 ८-"० अनुमति देता हूँ भिक्षुओंके जमा किये हुये (पदार्थ) को भिक्षुणियोंको दिलवाकर खानेकी।" 63 ६५-आसन-वसन, उपसम्पदा, भोजन, प्रवारणा, उपोसथ-स्थान, सवारी और दूत द्वारा उपसम्पदा (१) भिक्षुओंका भिक्षुणियोंको आसन आदि देना उस समय भिक्षुओंके पास गयन-आसन (=आसन-विछौना) अधिक था, भिक्षुणियोंके पास न था। भिक्षुणियोंने भिक्षुओंके पास सन्देश भेजा-“अच्छा हो भन्ते ! आर्य (लोग) हमें कुछ समयके लिये शयन-आसन दें। भगवान्से यह बात कही।- "० अनुमति देता हूँ भिक्षुणियोंको कुछ समयके लिये शयन-आसन देनेकी।" 64 (२) ऋतुमती भिक्षुणीके नियम १-उन नमय ऋतुमती भिक्षुणियाँ गद्दीदार चारपाइयों गद्दीदार चौकियोंपर वैठनी भी लेटती भी थीं। शयन-आसन खूनसे सन जाता था ।०- "० ऋतुमती निक्षुणियोंको गद्दीदार चारपाइयों गट्टीदार चौकियोंपर नहीं बैठना चाहिये, लेटना चाहिये, दुक्कट ०।"